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________________ २१० जीवाभिगमसूत्रे पुष्करिण्यः प्रज्ञप्ता विशुताः, 'ताओ पुक्खरिणीओ' ताः खलु पुष्करिण्यः, 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं'- सार्द्ध द्वादश योजनानि दैर्येण 'सक्कोसाइ छ जोयणाई विक्खंभेणं' षड्योजनानि क्रोशैकेनाधिकानि विष्कम्भेण विस्तारेण 'दस जोयणाई उव्वेहेणं'-दश योजनान्युद्वेधेन, 'अच्छाओ सहाओ पुक्खरिणी वण्णयो' अच्छाः श्लक्ष्णाः यावत् पुष्करिणी वर्णकः कर्तव्यः ताः खलु पुष्करिण्य: 'पत्तय पत्तेयं-प्रत्येकैकम्, 'पउमवरवेइया परिक्खित्ताओ' पद्मवरवेदिकया परिवेष्टितास्तास्ताः, 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ'-प्रत्येकं प्रत्येकं वनषण्डाः परिक्षिप्ताः, 'वण्णओ जाव पडिरूवाओ'-अत्र पद्मवरवेदिकावर्णनं वनषण्ड'तेसिणं महिंदझणाणं पुरओ तिदिसि तओ नंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ता' इन माहेन्द्रध्वजाओं के आगे पूर्वदिशा दक्षिणदिशा और उत्तरदिशा इन तीन दिशाओं में नन्दा नामकी तीन पुष्करिणियां हैं। वे पुष्करिणियां 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं सकोसाई छ जोयणाइविक्खंभेणं' १२॥ योजनकी लम्बी है और सबा छ योजन की चौडी है । 'दस जोयणाई उव्वेहेणं' तथा इनकी गहराई १० योजन की है 'अच्छाओ सहाओ पुक्खरिणी वण्णओ' यहां पूर्व की तरह इन पुष्करिणियों का वर्णन 'ये आकाश और स्फटिक की तरह निर्मल है इलक्ष्ण-चिकनी है। इत्यादि रूप से कह लेना चाहिये 'पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ताओ' ये प्रत्येक पुष्करिणियां पद्मवरवेदिकाओं से परिवेष्टित है। 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरीक्खित्ताओ' पद्मवरवेदिकाएं वनखण्डों से परिवेष्टित है। 'वण्णओ जाव पडिरूवाओ' यहां इन पद्मवरवेदिकाओं का और वनखण्डों का वर्णन नंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ता' से माहेन्द्र यानी 21 पूर्व दिशा, दक्षिण દિશા, અને ઉત્તર દિશા એ ત્રણ દિશાઓમાં નંદા નામની ત્રણ પુષ્કરિણી છે. से २ि०ीयो 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं सक्कोसाइं छजोयणाई विक्खंभेणं १२॥ સાડા બાર જનના વિસ્તારવાળી છે. અને સવા છ જનની પહોળી છે. 'दस जोयणाई उव्वेहेणं' तथा तेनी 15 १० ६स योननी छे. 'अच्छाओ सण्हाओ पुक्खरिणी वण्णओ' 2ीयां पडसानी म मा पुणियानुन તે આકાશ અને સ્ફટિક મણીયેના જેવી નિર્મળ છે. ગ્લણ ચિકણી છે. વિગેરે ५४२थी ४श से 'पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ताओ' ये ४२४ परिणियो ५१२ वेदियोथी पीटायेसी छे. 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ' से १२४ Y४रिणीयो 4143थी पी जायसी छे. 'वण्णओ जाव पडिरूवाओ महीयां જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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