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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् पेढियाओ पन्नत्ताओ'-त्रिसंख्यका मणिपीठिकाः कथिताः । 'ताओ णं मणिपेढियाओ' ताः खलु मणिपीठिकाः, 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' एकं योजनमायामविष्कम्भाभ्याम्, 'अद्ध जोयणाई बाहल्लेणं' अर्द्धयोजन मात्रं पृथत्वेन, 'सव्यमणिमईओ'-सर्वात्मना मणिमय्यः, 'आच्छा जाव पडिरूवाओ' अच्छा आकाशस्फटिवत् श्लक्ष्णाः लण्हाः घृष्टा मृष्टा नीरजस्काः निर्मला निष्पङ्का निष्कण्टकच्छायाः सप्रभाः सोयोताः समरीचिकाः प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपाः प्रतिरूपाः ॥ 'तेसि णं मणिपेढियाणं उप्पि'-तासां खलु मणिपीठिकानामुपरि, पत्तेयं पत्तेयं माहिंदझया' प्रत्येकं प्रत्येकं माहेन्द्रध्वजाः, अट्ठमाई जोयणाई उडू उच्चत्तेणं'-अर्द्धाष्टमानि सार्द्ध सप्तयोजनानि-ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन 'अद्धकोसं उव्वे हेण अर्धक्रोशं चतु:सहस्रप्रमाणमुद्वेधेनाऽधोभागे, 'अद्धकोसं विक्खंहै और छत्रातिछत्र है । 'तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ तिदिसि' इन चैत्यवृक्षों के आगे तीन दिशाओं में-पूर्वदिशा, दक्षिणदिशा और उत्तर दिशा में-'तओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' तीन मणिपीठिकाएं है। 'ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं' ये मणिपीठिकाएं लम्वाई चौडाइ में एक योजन की है। 'अद्धजोयणं चाहल्लेणं' तथा आधे योजन की इनकी मोटाई है। 'सव्वमणिमईओ' ये सब मणि. पीठिकाएं सर्वात्मना मणियों की बनी हुई है। 'अच्छा जाव पडिरूवाओ' ये सब मणिपीठिकाएं आकाश और स्फटिकमणि के जैसी निर्मल हैं और यावत् प्रतिरूप है यहां यावत्पद से 'श्लक्ष्णा लण्हा' आदि पदों का ग्रहण हुआ है 'तेसिणं मणिपेढियाणं उप्पि' इन मणिपीठिकाओं के उपर 'पत्तेयं पत्तेय' अलग अलग 'महिंदझया' माहेन्द्रध्वजाए है । 'अद्धट्ठमाइं जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं' साढे सात योजनकी ये ऊंची हिशायामा 'तवो मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' त्रए मणिपास छ. 'ताओणं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं' से मणिपी 3 प मे योगननी छे. 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं' तथा अर्धा योनी तना विस्तार छ. 'सव्वमणिमइयो' से धी भएपी सर्वशते मणियोनी अनेटस छ. 'अच्छा जाव पडिरूवाओ' २॥ मधी मणिपी8127 मा२॥ भने २५८४ भनिनावी निमछ. अने यावत्प्रति३५ छ. डियां यात्५४थी 'लक्ष्णा लण्हा' विगैरे पहोना सोड येत छ. 'तेसिणं मणिपेढियाणं उप्पि' ते भयायिनी ७५२ पत्तेयं पत्तेयं' 26L PARL 'माहिंदज्झया' भाडन्द्र बन्न। छे. 'अद्धटुमाइं जोयणाई उडू उच्चत्तेणं' से साडेसात योननी यापाजी छ. 'अद्धकोसं उध्वेहेणं' अर्धा असन। तेन द्वेध 15 छ. २मने 'अद्धकोसं विक्खंभेणं' मी જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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