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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् १९७ मणिपेढ़ियाणं उप्पि' तासां मणिपीठिकानां खलु उपरि, 'पत्तेयं पत्तेय चेइयथूभा पन्नत्ता' प्रत्येकं प्रत्येकं चैत्यस्तूपाः प्रज्ञप्ताः (इह चैत्यपदं ज्ञानबोधकम्) चितीसं ज्ञाने' इति स्मरणात्, न तु-जिनबिम्ब बोधकमिति रहस्यम् ॥ 'ते णं चेइयथूभा' ते खलु चैत्यस्तूपाः, 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्याम्, 'साइरेगाइं दो जोयणाइं उर्दू उच्चत्तेणं' सातिरेके द्वे योजने ऊर्ध्व मुच्चैस्त्वेन, ‘सेया' श्वेताः श्वेतत्वमेवोपमया दर्शयति-'संख कुंद' इत्यादि । 'संखंक कुंद-दगरयामय महितफेणपुंजसण्णिकासा' शङ्खाङ्ककुन्दोदकरजोऽमृतमथितफेनपुञ्जसन्निकाशाः, 'सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वरत्नमया त्मना रत्नमय है 'अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' और अच्छ-आकाशएवं स्फटिकमणि के जैसी निर्मल एवं यावत् प्रतिरूप है । यहां यावत्पद मे इलक्ष्णा घृष्टा मृष्टा आदि पदों का संग्रह हुआ है 'तासि णं मणिपेढियाणं उम्पि' इन प्रत्येक मणिपीठिकाओं के ऊपर 'पत्तेयं पत्तेयं' अलग अलग-चेइयथूभा पन्नत्ता' चैत्य स्तूप-स्तंभ है, जिनबिम्बका नहीं। 'ते णं चेइयथूभा' वे चेत्यस्तूप 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' लम्बाइ चोडाइ में दो योजन के हैं 'साइरेगाइं दो जोयणाई' उडूं उच्चत्तेणं' और ऊंचाई में ये कुछ अधिक दो योजन के है । 'सेया' तथा विलकुल ये सब श्वेतवर्ण के है 'संखककुंददगरयामयमहितफेणपुंजसनिकासा' जैसा शङ्ख सफेद होता हैं, वैसे ही ये सब सफेद है जैसे अकरत्न एवं कुन्द पुष्प सफेद होता है। तथा उदकपानी -सफेद होता है । रज-अमृत, मथित फेन पुञ्ज सफेद होता है । वेसे ही ये सफेद है ये उनकी सफेदी प्रकट करने के लिये दृष्टान्त रूप में पीडा सर्वात्मना २त्नमय छे. 'अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' भन्छ આકાશ અને સ્ફટિક મણિન જેવી નિર્મળ છે. યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. અહિયાં यावत् ५४थी १६॥ धृष्ट भृष्ट विगेरे पहानी सड थये। छ. 'तासिणं मणिपेढियाओ उप्पिं' से ४२४ मणिपी मानी ५२ पत्तेयं पत्तेयं' मग सस 'चेइयथूभा पन्नत्ता' चैत्यस्तूप। स्थाले। छ. न नडी 'तेसि णं चेइयथूभा' २२ चैत्यस्तूप। 'दो जोयणाइं अयामविक्रखंभेणं' में योननी मा पहा व छ. 'साइरेगं दो जोयणाई उढं उच्चत्तणं' मने यामा से ४४४ पधारे थे योनना छ. 'सेया' ते अधा येत्यस्तूप। म सह पनि छ. 'संखकुंद दगरयामयमहितफेनपुंजसन्निकासा' ५ । स३६ जाय છે તેવાજ એ ચૈત્યસ્તૂપ સફેદ હોય છે. એક રત્ન જેવું સફેદ હોય છે. કુંદ પુષ્પ તથા પાણી, અમૃત, મંથન કરવામાં આવેલ ફીણને ઢગલો એ બધા જેવા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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