SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाभिगमसूत्रे वाप्यादयः स्फटिकवद्-बहिनिर्मलप्रदेशाः, 'सण्हाओ' श्लक्ष्णाः-श्लक्ष्णपुद्गलनिष्पादित बहिः प्रदेशास्ता वाप्यादयः 'रययामयकूलाओ' रजतमयकूला:- रजतनिर्मिततटाः, रजतमयं कूलं-तटं यासां वाप्यादिकानां तास्तथा, 'समतीराओ' समतीराः, समं-गर्ताभावात् अविषमं तीरं-तीरावर्तिजलापूरितं स्थानं यासां ताः समतीराः 'वइरामयपासाणाओ' वज्रमया पाषाणा:-प्रस्तरशिला यासां तास्तथा, तथा-'तवणिजमयतलाओ तपनीयमयतलाः, तपनीय-स्वर्णविशेषस्तन्मयं तलंभूमितलं यासां तास्तथा, तथा-वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ' वैडूर्यमणिस्फटिकपटल-प्रत्यवतटाः, वैडूर्यमणिमयानि स्फटिकपटलमयानि प्रत्यवतटानि-तटसमीपवर्तिनोऽत्युन्नतप्रदेशा यासां तास्तथा, 'णवणीयतलाओ' नवनीततलाः, नवनीतवत् सुकोमलं तलं यासां तास्तथा, 'सुवण्ण सुज्झयरययमणि बालुयाओ' सुवर्णसुज्झरजतमणिबालुकाः, तत्र सुवर्ण-पीतकान्ति हेम, सुज्झरूप्यविशेषः रजतं प्रतीतं तन्मय्यो बालुका:-सिकता यासु तास्तथा, 'सुहोयारा स्वच्छनिर्मल-प्रदेशोंवाले हैं 'रयणामयकूलाओ वइरामयपासाणाओ' रजत-चांदी के बने हुए-इनके तट है इनमें जो पत्थर लगे हुए है वज्र रत्न के बने हुए है 'तवणिज्जमयतलाओ' इनका तलभाग तपनीय सुवर्ण का बनाहुआ है 'वेरुलियमणिकालियपडलपच्चोयडाओ' इनके जो तट समीपवर्ती अत्युन्नतप्रदेश है वे वैडूर्यमणि और स्फटिक मणिके बने हुए है 'णवणीयतलाओ' नवनीतमक्खन के जैसे इनके सुकोमलतल है 'समतीराओ' वे इनके तीर गर्त आदिके अभाव से सम है विषम नहीं है 'सुवण्ण सुज्झरययमणिवालुयाओ' इनमे जो वालुका है वह सुवर्ण पीतकान्तिवाले सुवर्ण की-और शुद्ध रजतचांदी की एवं मणियों की है। 'मुहोयारा सुउत्तराओ' ये सब जलाशय ऐसे है कि जिनके भीतर प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की सहाओ' २।४।२मने टिनी भा३४ २१२७ निभ प्रशा . 'रयणामयकुलाओ वइरामय पासाणाओ' २०४त न्याहाना अनेसामने तटाछ. समां से पत्थ। साता छ. २२ १२२त्नना पनेसा छ. 'तवणिज्जमय तलाओ' सेना तसमा तपनीय सोनाना पटो छ. 'वेरुलियमणिफालिय पडलपच्चोयडाओ' કીનારા નજીકના અતિ ઉન્નત પ્રદેશ છે તે વૈર્યમણિ અને સ્ફટિક મણિના अनेसा छ. 'णवणीयतलाओ' नवनीत ४ता माया सुमा तना तणा छ. 'समतीराओ' तेभर सेना ती२ प्रदेश 13 मम। विनाना पाथी सम छे. विषम नथी. 'सुवण्णसुज्झरययमणिवालुयाओ' मा वायु-सरले ती छ, ते पाणी तीवणा सोनानी भने शुद्ध यांहीनी भने मणियोनी छे. 'सुहोया। જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy