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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् १९१ निष्पङ्का नीरजाः-निष्कंटकच्छाया-सोयोता-प्रासादीया दर्शनीयाऽभिरूपाप्रतिरूपा ॥ 'तीसे णं सुहम्माए सभाए' तस्याः खलु सुधर्मासभायाः, 'तिदिसि' तिसृषु दिक्षु प्रत्येकभागे 'तओ दारा पन्नत्ता' त्रीणि द्वाराणि प्रख्यातानि-पूर्वदक्षिण-पश्चिमासु, 'ते णं दारा पत्तेयं पत्तेयं तानि खलु द्वाराणि प्रत्येकं प्रत्येकम्, 'दो दो जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं' द्वे द्वे योजने ऊर्ध्वमुचैरत्वेन; 'एगं जोयणं विक्खंभेणं' एक योजनं विष्कम्भेण, 'तावइयं चेव पवेसेणं' तावदेवएकैकमेव योजनं प्रवेशेन, 'सेया वरकनगथूभिया' श्वेतानि वरकनकस्तूपिकानि, वरैः श्रेष्ठैः कनकैः कृता निर्मिता स्तूपिका-उपरितनभागा येषु तानि, तथा-'जाव वणमालादारवन्नओ' यावद्वनमालाद्वारवर्णकः तथाहि-ईहामृगमणि के समान यह निर्मल है यावत्-प्रतिरूप है यावत् शब्द से इलक्ष्णा-लण्हा-वृष्टा-मृष्टा निर्मला-निष्पंका, नीरजा-निष्कंटकच्छाया, सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा, यहां इन पदों का संग्रह हुआ है 'तीसेणं सुहम्माए सभाए' उस सुधर्मासभाकी 'तिदिसि' तीन दिशाओं में 'तओ दारा पण्णत्ता' तीन दरवाजे कहे गये है 'तं जहा' जैसे-'पुरस्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं' एक दरवाजा पूर्व दिशा में दूसरा दरवाजा दक्षिणदिशा में और तीसरा दरवाजा उत्तर दिशा में है। 'तेणं दारा पत्तेयं २' ये दरवाजे प्रत्येक-अर्थात् इन तीनों दरवाजों में से प्रत्येक दरवाजा-'दो २ जोयणाई उट्टे उच्चत्तेणं' ऊंचाई में दो दो योजन का है 'एगं जोयणं विक्खंभेणं' और चौडाइ में एक २ योजन का 'तावइयं चेव पवेसेणं' इनका प्रत्येकका प्रवेश इतना ही हैअर्थात-१ योजन का है। 'सेया वरकनकथूभिया' इन दरवाजों के उपरितनभाग श्वेत एवं श्रेष्ठ ऐसे सुवर्ण के बने हुए हैं । 'जाव वन्नछ. यावत् ४थी 'लक्ष्णा-लण्हा-घृष्टा-मृष्टा-निर्मला-निष्पंका-नीरजा-निष्कंटकच्छाया, सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा' 241 पहाना मा सई थयेस छ. 'तीसे णं सुहम्माए सभाए' ये सुधसिमानी तिदिसि' त्रणे हिशायमा 'तओ दारा पण्णत्ता' ४ ४२५००। उस छे. 'तं जहा' म 'पुरस्थिमेणं, दाहिणेणं उत्तरेणं' से४ ४२वाले पूर्व शाम मील. ४२वा हक्षिण दिशामा भने त्रीने ४२वान्न उत्त२ हिमांछे 'तेणं दारा पत्तेयं पत्तेय' से १२४ १२वात सेटले है ऋणे ४२वान। पैत्री मे ४ ४२वात 'दो दो जोयणाई उडूढं उच्चत्तेणं' याभा मध्ये योजना छे. 'एग जोयणं विक्ख भेणं' मने पडामा से से योनिन छ. 'तावइय चेव पवेसेणं' ते १२४ने। प्रवेश ५७१ कोटा छे. मर्थात् मे योजना छ. 'सेया वरकनकथूभिया' को ४२वातमानी पर्ने माग स३४ मने उत्तम सेवा सोनान गनेस छ. 'जाव वण्णमाला दारवण्णओं' महीयां જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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