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जीवाभिगमसूत्रे सहस्रकलिता, 'मिसमाणीभिब्भि समाणी' दीप्यमाना देदीप्यमाना-प्रकाशमानाऽतिशयेन प्रकाशमाना, 'चक्खुल्लोयणलेसा-चक्षुलौंकनलेशाः चक्षुष्कर्तृकलोकनेऽवलोकने दर्शनीयत्वाऽतिशयतः श्लिष्यतीति चक्षुर्लोकितलेश्या, 'मुहफासा' शुभस्पर्शाः, 'सस्सिरीयरूवा' सश्रीकरूपा, स शोभाकानि रूपाणि विद्यन्ते यत्र सास श्रीकरूपा, 'कंचणमणिरयणथूभियागा' कांचनमणि रत्नस्तूपिकाकाः काश्चनमणिरत्नानां स्तूपिका-शिखरं यस्याः सा काश्चनमणिरत्नस्तूपिकाका, 'णणाविह पंच वण्ण घंटा पडाग पडिमंडितग्गसिहरा' नानाविध पश्चवर्ण घण्टा पताका परिमण्डिताग्रशिखरा, नानाविधाभिरनेकप्रकाराभिः पताकाभिः पञ्चवर्णैः संयुताभिघंटाभिश्च परिमण्डितानि अग्रशिखराणि यस्याः सा तथेति । 'धवला' धवलाः श्वेताः 'मरीइ कवचं विणिम्मुयंती' मरीचयः एव कवचं विमुश्चन्तीव भासते। 'लाउल्लोइय महिया-लाउल्लोइयमहिता, लाउइयं नाम यद् भूमे गोमयादिना-उल्लेपनम् उल्लोइयं कुडयानां मालस्य च सेटिका दिभिः समष्टी करणमिति, ताभ्यामिव महिता-पूजिता इति 'लाउल्लोइय महिता युक्ता। तथा तेज के ही प्रभाव से चमक दमकवाली बनी हुई है। 'चक्खुल्लोयणलेसा' देखनेपर यह-ऐसी लगती है कि मानो देखनेवालों के नेत्रों को यह पकड रही है 'सुहफासा' इसका स्पर्श सुखकारी है । 'सस्सिरीय. रूवा' रूप इसका बडा मनोहर है 'कंचणमणिरयणथूभियागा' इसके शिखर सुवर्ण मणि एवं रत्नों के बने हुए है। 'णाणाविहपंचवण्णघंटा पडागपडिमंडितग्गसिहरा' अनेक प्रकार की पताकाओं से एवं पांचवर्णों से युक्त घंटाओं से इसके आगे के शिखर सुशोभित है । 'धवला' ये शिखर सफेद है । 'मरीइकवचं विणिम्मुयंती' अतः उनसे यह ऐसी ज्ञात होती है कि मानो यह किरणरूपी कवचों कों ही छोड रही है अर्थात् किरणों के समूह को ही उगल रही है 'लाउल्लोइयमहिया' गोमय से इसका नीचेका सब भाग लिपा हुआ है और भीतें इसकी यभागी अनेस छ. 'चक्खुल्लोयणलेसा' नवाथी गे सेवा मागे
नारायना नेत्रीने ५४ी २७स छे. 'सुहफासा' तेना २५ सत्यत सुम४।२४ छ. 'सस्सिरीयरूवा' तेनु ३५ घन मना २ . 'कंचणमणिरयण थूभियागा' तेनु शि५२ सुवर्ण, भणी मने रत्नाना अनेस छ. 'णाणाविह पंचवण्ण घंटापडागपडिमंडितम्गसिहरा' मने प्रारनी पतामाथी मने पाय पोथी युत घटायाथी तेना माना शिरी सुशोभितछ. 'धवला' से शिम। सपा स३४ छ 'मरीइकवचंविणिम्मुयंति' तेथी से सेवाय छ. है मे २९ ३पी ४१એને જ છેડી રહેલ છે. અર્થાત્ કિરણોના સમૂહને જ ઓગાળી રહેલ હોય છે.
જીવાભિગમસૂત્ર