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________________ जीवाभिगमसूत्रे 'सुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्थ वेस् लियविमलखंभा' मुश्लिष्टः संयोजितो यो विशिष्टो लट्ठः सुधालेपविशेषः हंस इव श्वेततर स्तत्र संस्थित प्रशस्तवैडूर्यमणिभिर्विमलाः स्तम्भाः यस्याः सा सभा, 'णाणामणिकणगरयण खइय उज्जल बहसमसुविभत्तचित्ता णिचियरमणिज्जकुट्टिमतला' नानामणिकनकरत्नैः खचितः, अंतोऽप्युज्ज्वलनिर्मलः बहुसमः, अत्यन्तसमः सुविभक्तश्चित्रनिचितः-चित्र प्तिो रमणीयश्च कृत्रिमतलो यस्यां सा-नानामणि कनकरत्नखचितोज्ज्वलबहुसमसुविभक्तचित्र निचितरमणीयकृत्रिमतला, 'ईहामिय=उसभ-तुरगणरमगर-विहगवालगकिण्णररुरुसरभचमरकुंजरवण लयपउमलय भत्तिचित्ता' ईहामृगवाजे पर शोभा बढाने के निमित्त एक शालभञ्जिका पुत्तलिका-बनी हुइ है 'सुसलिट्ठविसिट्ट लट्ठसंठियपसत्थवेरुलिया विमलखंभा' इनके खम्भों पर सुधा-चूना-का बहुत ही अच्छी तरह से लेप पलस्तर-किया गया है और उसमें वैडूर्यमणि खचित है। इस कारण खम्भे इसके वडे निर्मल प्रतीत होते हैं 'ल?' शब्द का अर्थ मनोज्ञ है सुश्लिष्ट शब्द यह 'लटका विशेषण है अच्छी तरह से लगायागया ऐसा अर्थ सुश्लिष्ट पद का है 'णाणामणिकणगरयणरइय उज्जलबहुसमसुविभत्त चित्ता णिचि. यरमणिजकुटिमतला' इस सभा का जो भूमिभाग है वह अनेक मणियों से सुवर्ण से एवं रत्नों से (जडा हुवा) खचित्त है अत: वडा ही वह उज्ज्वल लगता है। तथा-यह भूमि भाग एकसा है-ऊंचा नीचा नहीं है निबिड है कठोर है-फुस फुसा नहीं है सुविभक्त है-और रमणीय है। 'इहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर रुरुતોરણોની ઉપર બહારના દરવાજાની ઉપર શોભા વધારવા માટે એક અતિ રમएणीय सम४-पुतणी मनेट छ. 'सुसिलिटु विसिट्ठलसंठिय पसत्थवेरुलिया विमलखंभा' तेना थानासानी ९५२ सुधा तासने समान मात Borge ચુનાને લેપ ઘણીજ સુંદર રીતે કરેલ છે. અર્થાત્ પલાસ્તર કરેલ છે. અને તેમાં ડૂર્ય મણિયે જડેલા છે. તેથી તે સ્તંભે ઘણાજ નિર્મળ જણાય છે. ' શબ્દનો અર્થ મજ્ઞ એ પ્રમાણે છે. સુશ્લિષ્ટ એ શબ્દ “ એ પદનું વિશેષણ છે. सुश्लिष्ट पहनो अर्थ सारी शेते सयामा मावेस प्रमाणे थाय छे. 'णाणामणिकणगरयणरइय उज्जल बहुसमसुविभत्तचित्ता णिचियरमणिज्ज कुट्टिमतला' मा समानीको ભૂમિભાગ છે, તે અનેક પ્રકારના કીમતિ મણિચોથી સુવર્ણથી અને રત્નથી જડેલ છે. તેથી તે ઘણોજ ઉજજવલ લાગે છે. તથા આ ભૂમિભાગ એક સરખો છે ઉંચા નીચે નથી. નિબિડ ગાઢ છે. કઠોર છે. પચે નથી. સુવિભક્ત છે. અને २मणीय छे. 'इहामिय उसमतुरगणर मगर विहगवालगकिन्नररुरुसरभचमरकुंजरवणलय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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