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________________ १४२८ जीवाभिगमसूत्रे उत्कर्षेणाऽष्टादशपल्योपमानि पूर्वकोटिपृथक्त्वाऽभ्यधिकानि एकेनादेशेन-जघन्येन पूर्ववत्-उत्कर्षेण चतुर्दशपल्योपमानि पूर्वकोटि पृथक्त्वाऽभ्यधिकानि, एकेनाऽऽदेशेन जघन्येन पूर्ववत् उत्कर्षेण पल्योपमशतं पूर्वकोटिपृथक्त्वाऽभ्यधिकम्, पल्योपम की कायस्थिति काल साबित हो जाता है 'एक्का देसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडी पुहुत्त मभहियाई' किसी एक कथन की अपेक्षा स्त्रीवेद की कायस्थिति का काल जघन्य से तो एक समय का है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि पृथक्त्वाधिक १८ पल्योपम की है यह इस प्रकार से समझनी चाहिये जैसे-कोई जन्तु पूर्वकोटि प्रमाण की आयुवाली नर स्त्री के रूप में या तिर्यग् स्त्री के रूप में पांच या छह बार उत्पन्न हो गया फिर वहां से मर कर वह ईशान देव लोक में दो बार उत्कृष्ट स्थिति वाली परिगृहीत देवियों के रूप में उत्पन्न हो गई तो इस कथन वादी के मत से इस वेद की कायस्थिति का काल पूर्वोक्त रूप से सध जाता है तृतीय आदेश की अपेक्षा इस वेद की कायस्थिति का काल जघन्य से तो एक समय का है-और उत्कृष्ट से 'चउद्दस पलिओवमाई पुच्चकोडि पुहुत्तमब्भहियाई पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक १४ पल्योपम का है। यह इस तरह से जानना चाहिये-पूर्वकोटि प्रमाण आय वाली नर स्त्री या तिर्यक स्त्री के रूप में कोई जीव पांच या छह बार उत्पन्न ११० मे से। इस पक्ष्या५मनी स्थितिमा ४४७१ सामित is onय छे. 'एक्कादेसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडी पुहुत्त. मव्भहियाई' । २.४ ४थननी अपेक्षाथी स्त्रीवहनी यस्थितिन । धन्यथी તે એક સમયને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વ કેટિ પ્રથફત્વ અધિક ૧૮ અઢાર પપમાને છે. તે આ રીતે સમજવું જોઈએ જેમ કે-કે જીવ પૂર્વકેટિ પ્રમાણુની આયુષ્ય વાળી પુરૂષ સ્ત્રીના રૂપથી અથવા તિર્યંચ સ્ત્રીપણાથી પાંચ અથવા છ વાર ઉત્પન્ન થઈ જાય તે પછી ત્યાંથી મરીને તે ઈશાનદેવ લેકમાં બે વાર ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ વાળી પરિગૃહીત દેવિ પણાથી ઉત્પન્ન થઈ જાય તે આ કથનકારના મતથી આ વેદની કાયસ્થિતિને કાળ પૂર્વોકત પણાથી સિદ્ધ થઈ જાય છે. ત્રીજા આદેશની અપેક્ષાથી આ વેદની કાયસ્થિતિને કાળ જઘન્યથી तो मे सभयन। छ. अने उत्कृष्टथी 'चउद्दस पलिओवमाइं पुव्वकोडि पुहुत्तमभहियाई' पू र पृथइ.१ अधि: १४ यौह पक्ष्या५मना छ. ते माशते સમજવું–પૂર્વકેટિની આયુષ્યવાળી પુરૂષ સ્ત્રી અથવા તિર્યંચ સ્ત્રીના રૂપથી કેઈ જીવ પાંચ અથવા છ વાર ઉત્પન્ન થઈ જાય અને તે પછી ત્યાંથી મરીને જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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