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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ५ सू. १३१ सूक्ष्मपृथ्वीकायादीनामल्पबहुत्वम् ११९९ कतरेऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिकावेति प्रश्नः ? भगवानाह - गौतम ! 'सव्वत्थोवा सुहुमते काइया' सर्वस्तोकाः सूक्ष्मतेजस्कायिका असंख्येयलोका काशप्रदेशप्रमाणत्वात्, 'सुहुमपुहवीकाइया विसेसाहिया' सूक्ष्मतेजस्कायिकेभ्यः सूक्ष्मपृथिवीकायिका विशेषाधिकाः प्रभूताऽसंख्येयलोकाकाशप्रदेशपरिमाणत्वात् 'सुम आउवाऊ विसेसाहिया' सूक्ष्माष्कायिका विशेषाधिकाः प्रभूततरासंख्येयलोकाकाशप्रमाणत्वात् । तेभ्यः सूक्ष्मवायुकायिका विशेषाधिकाः, प्रभूततमाऽसंख्येयलोकाकाशप्रदेशराशिमानत्वात्, 'मुहुम णि ओया असंखेज्जगुणा' में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! 'एवं अप्पा बहुगं' इनका अल्पबहुत्व इस प्रकार से है - 'सव्वत्थोवा सुहुम तेउकाइया' सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव सबसे कम हैं क्योंकि इनका प्रमाण लोकाकाश के असंख्यातवे भाग में जितने प्रदेश है उतना है 'सुहुम पुढविकाइया विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव विशेषाधिक है क्योंकि इन का प्रमाण लोकाकाश के प्रभूत असंख्यातवे भागों में जितने प्रदेश है उतना है 'हुम आउ वाऊ विसेसाहिया' सूक्ष्म अष्कायिक और सूक्ष्म वायुकायिक सूक्ष्म पृथिवीकायिकों की अपेक्षा विशेषाधिक है क्योंकि इनका सूक्ष्म अष्कायिकों का प्रमाण लोकाकाश के प्रभूततर असंख्यातवें भागों में जितने प्रदेश है उतना है तथा सूक्ष्म अष्कायिकों की अपेक्षा सूक्ष्म वायुकायिकों का प्रमाण विशेषाधिक है क्योंकि इनका प्रमाण लोकाकाश के प्रभूततम असंख्यातवें भाग में जितने प्रदेश है उतना है। 'सुहुमणिओया असंखेज्जगुणा' सूक्ष्म उत्तरभां अनुश्री उहे छे - हे गौतम! ' एवं अप्पा बहुगं' तेभनु मध्य हु पायें या प्रमाणे छे. - ' सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सूक्ष्म तेनायि व સૌથી ઓછા છે. કેમકે તેમનું પ્રમાણ લેાકાકાશના અસ`ખ્યાતમાં ભાગમાં भेटला अहेश छे, भेट' छे. 'सुहुम पुढविकाइया विसेसाहिया' तेना ४२तां सूक्ष्म पृथ्वीप्रायि व विशेषाधि छे. 'सुहुम आउ वाऊ विसेसाहिया' सूक्ष्म अच्छा યિક અને સૂક્ષ્મ વાયુકાયિક સૂક્ષ્મ પૃથ્વી કાયિકાના કરતાં વિશેષાધિક છે. કેમકે તેમનું સૂક્ષ્મ અષ્ઠાયિકાની જેમ લેાકાકાશના પ્રભૂતતર અસ ખ્યાત ભાગેામાં જેટલા પ્રદેશેા છે. એટલુ છે. તથા સૂક્ષ્મ અષ્ઠાયિકાના કરતાં સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકાનું પ્રમાણ વિશેષાધિક છે. કેમકે તેનું પ્રમાણ લેાકાકાશના પ્રભૂતतभ असण्यातभा लागमां बेटा प्रदेश छे. भेटसु छे. 'सुहुमणिओया असंखेज्जगुणा' सूक्ष्म निगोह तेना उरतां असभ्याता वधारे छे, भ} हरे જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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