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________________ १९६४ जीवाभिगमसूत्रे असंख्येयगुणाः पर्याप्तकत्रीन्द्रियापेक्षया । चतुरिन्द्रिया अपर्याप्तका विशेषाधिकाः अपर्याप्तकपञ्चेन्द्रियतः । त्रीन्द्रिया अपर्याप्तका विशेषाधिकाः अपर्याtan चतुरिन्द्रियापेक्षया अपर्याप्तकद्वीन्द्रियाः अपर्याप्तकत्रीन्द्रियापेक्षया । एकेन्द्रिया अपर्याप्तका अनन्तगुणाः अपर्याप्तक द्वीन्द्रियेभ्यः । एतदपेक्षयाऽपर्याप्तक सेन्द्रिया विशेषाधिकाः । एभ्यः एकेन्द्रियपर्याप्तकाः संख्ये यगुणाः । एभ्यः सेन्द्रियपर्याप्ता विशेषाधिकाः । एभ्यो विशेषाधिकाः सेन्द्रिया भवन्तीति अल्पबहुत्वप्रकरणम् । त एते पञ्चविधाः पञ्चप्रकारकाः संसारसमापन्नका - जीवा निरूपिताः । इति चतुर्थी प्रतिपत्तिः ॥ सू० १२७॥ उक्ता पञ्चविधा चतुर्थी प्रतिपत्तिः क्रमप्राप्तां षड्विधां पञ्चमीं प्रतिपत्तिमथारभते मूलम् - तत्थ णं जे ते एवं आहंसु छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तं जहा - पुढवीकाइया आउक्का पाधिक हैं इनकी अपेक्षा 'वेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' दोइन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं 'एगिंदिय अपज्जत्तगा अनंतगुणा' इनकी अपेक्षा एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनन्तगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'सइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया एगिंदिय पज्जत्ता संखेज्जगुणा' सेन्द्रिय अपर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं इनकी अपेक्षा एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव संख्यातगुणें अधिक हैं । 'सइंदिय पज्जता विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं । और इनसे विशेषाधिक सेन्द्रिय है । इस तरह से पांच प्रकार के संसारी जीवों के सम्बन्ध में यह निरूपण है | ॥ १२७॥ ॥ चतुर्थी प्रतिपत्ति समाप्त ॥ अपर्याप्त विशेषाधि छे. तेना उरतां 'बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' मे छन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिः छे. 'एगिदिय अपज्जत्तगा अनंतगुणा' तेना कुरतां येडेन्द्रिय अपर्याप्त अनंता वधारे छे, तेना ४२तां 'सइंदिया अप ज्जत्तगा विसेसाहिया एगिंदिय पज्जत्ता संखेज्जगुणा' सेन्द्रिय अपर्याप्त व વિશેષાધિક છે. તેના કરતાં એકેન્દ્રિય પર્યાપ્તક જીવ સખ્યાતગણા વધારે છે. 'सदिय पज्जतगा विसेसाहिया' तेना ४२ सेन्द्रिय पर्याप्त व विशेषाधि છે. અને તેનાથી વિશેષાધિક સેન્દ્રિય છે, આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના સ'સારી જીવાના સંબંધમાં આ નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ! સૂ. ૧૨૭ ॥ ચેાથી પ્રતિપત્તિ સમાપ્ત જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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