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________________ ११५८ जीवाभिगमसूत्रे अपजत्तगा अणंतगुणा' एकेन्द्रियाः अपर्याप्तकाः जीवाः अनन्ताऽनन्तगुणाः वनस्पतिकायानामपर्याप्तकानामनन्तानन्ततया सदा प्राप्यमाणत्वात् । 'सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया' सेन्द्रियाः पर्याप्तका विशेषगुणाधिका इति । पर्याप्तकैकेन्द्रियादीनामल्पत्वादिकं वक्ति-'सव्वत्थोवा.” इत्यादि, पर्याप्तकैकेन्द्रियादीनां के केभ्योऽल्पाः० इत्यादि प्रश्नः ! भगवानाह-गौतम ! 'सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा' सर्वस्तोकाश्चतुरिन्द्रियाः पर्याप्तकाः यतोऽल्पायुषश्चतुरिन्द्रियास्ततः प्रभूतकालमवस्थानाभावात्, पृच्छासमये स्तोका अवाप्यन्ते ते स्तोका अपि प्रतरेयावन्ति अगुलाऽसंख्येयभागमात्राणि खण्डानि तावद् मानत्वादिति । 'पंदिया हैं उतने ये हैं । अपर्याप्तक तेइन्द्रिय जीवों की अपेक्षा अपर्याप्तक दो इन्द्रिय जीव विशेषाधिक है क्योंकि एक प्रतर में जितने प्रभूततम अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण खण्ड हैं उतने ये हैं । अपर्याप्तक तेइन्द्रिय जीवों की अपेक्षा अपर्याप्तक दोइन्द्रिय जीव विशेषाधिक है क्योंकि एक प्रतर में जितने प्रभूततम अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण खण्ड हैं उनके बराबर इनका प्रमाण है । इन अपर्याप्तक दोइन्द्रिक जीवों की अपेक्षा जो एकेन्द्रिय अपर्याप्तकजीव हैं वे अनन्तगणे हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जो अपर्याप्त जीव हैं वे अनन्तानन्त हैं। 'सेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' सेन्द्रिय पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं। पर्याप्तक एकेन्द्रियादिक जीवों के अल्पबहुत्व का कथन 'सव्वत्थोवा चतुरिंदिया पज्जत्तगा, पंचिंदिया पज्जत्तगाविसेसाहिया, बेइंदिय पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसा. हिया, एगिंदिय पज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाતતર આગળના અસંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ ખંડ છે એટલા તે છે. અપર્યાપ્તક તે ઈદ્રિય જીવોના કરતાં અપર્યાપક બે ઈદ્રિયવાળા જી વિશેષાધિક છે. કેમકે–એક પ્રતરમાં જેટલા પ્રભુતામ આગળના અસંખ્યાતમાં ભાગ ખંડ છે તેની બરાબર તેનું પ્રમાણ છે. આ અપર્યાપ્તક બે ઈદ્રિયવાળા જેના કરતાં એક ઈદ્રિય અપર્યાપક જીવે અનંત ગણું છે. કેમકે-જે વનસ્પતિકાયિક ७१ छ, ते मन तानत छ. 'सेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया' सेन्द्रिय પર્યાપ્તક જીવ વિશેષાધિક છે. પર્યાપ્તક એકેન્દ્રિય જીવોના અલ્પ બહુવનું કથન'सव्वत्थोवा चतुरिंदिया पज्जत्तगा, पंचि दिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिदिया पज्जत्तगा अणंतगुणा, सेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया' गौतभस्वामी प्रभुश्रीन न्यारे मे पूछ्यु भगवन् ! જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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