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________________ २०४ जीवाभिगमसूत्र णचंगेर्योऽपि वक्तच्या ज्ञातव्याश्च, 'सिद्धत्थ चंगेरीओ' सिद्धहस्त चङ्गेर्यः 'लोमहस्थ चंगेरीओ' लोमहस्त चङ्गेर्य्यः-मयूरपिच्छहस्त चंगेर्यः, चंगेरीनाम पात्रविशेषः अपि वक्तव्या ज्ञातव्याश्च, कथंभूता इमा चङ्गेय स्तत्राह-'सबरयणा' इत्यादि, 'सवरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' सर्वरत्नमय्योऽच्छाः यावत् श्लक्ष्णा घृष्टा मृष्टा नीरजस्का निर्मला निष्पङ्का निष्कंकटच्छाया अभिरूपाः प्रतिरूपा इति । 'तेसिणं तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरत:-अग्रभागे 'दो दो पुप्फपडलाइं' द्वे द्वे पुष्पपटले 'जाव लोमहत्थपडलाई' यावत्-हयपटलानि गजटलानि किन्नर किंपुरुषमहोगगन्धर्ववृषभ सिद्धहस्तपटलानि ज्ञातव्यानि कथं भूतानि एतानि पटलानि तत्राह-सव्वरयणामया' इत्यादि, 'सव्वरयणामयाई जाव पडिरूवाई' सर्वरत्नमयानि-यावत्-अच्छानि इलक्ष्णानि नीरजस्कानि की-चंगेरिकाएं है दो दो गंधचूर्ण को रखने की चंगेरिकाएं है दो दो वस्त्र रखने की चंगेरिकाएं है, दो दो आभरणों को रखने की चंगेरिकाएं (टोकरी) है। 'सिद्धत्य चंगेरीओ' दो दो सिद्धार्थ-सरसों को रखने की चंगेरिकाएं है। 'लोमहत्थचंगेरीओ' दो दो मयूर पिच्छों को रखने की चंगेरिकाएं है। ये सब चंगेरिकाएं 'सव्वरयणा मईयो अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' सर्वात्मना रत्नमय है, और अच्छ आदि विशेषणों वाली हैं । 'तेसिणं तोरणाणं पुरओ' इन तोरणों के सामने दो दो पुष्फपटलाई' दो दो पुष्पपटल है दो २ हयपटल है, दो २ गजपटल है दो दो किन्नर पटल है दो दो किं पुरुष पटल है दो दो महोरग पटल है दो दो गंधर्व पटल है, दो दो वृषभपटल है दो दो सिद्धार्थ पटल है, ये सब पटल 'सव्वरयणामयाइं जाव पडिरूवाई' सर्वात्मना रत्नमय छ. तभ०४ मध्ये 'मल्लगंधचुण्णवत्थाभरणचंगेरीओ' मागास। रामपानी योगेशકાઓ છે. બબ્બે ગંધચૂર્ણ રાખવાની ચંગેરીકાઓ છે. બબ્બે વસ્ત્રો રાખવાની शाम छ. मने मम्मे माभूषा २१वानी यारीमा छ. 'सिद्धत्थ चंगेरीकाओ' र सिद्धार्थ-स२सपने शवानी यारी छ. 'लोमहत्य चंगेरीओ' બબ્બે મેરના પીંછા રાખવાની ચંગેરિકાઓ છે. આ બધીજ ચંગેરીકાઓ (ટોપલી) 'सव्वरयणा मईओ अच्छाओ जाव पडिरुवाओ' सामना २त्नमय छे. तेम०४ ५२० विगैरे विशेषणो वाणी छे. 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' में तेणीनी सामे 'दो दो पुप्फपटलाई' मण्ये ५५ ५८१ छ. म य ५८४ छ. मण्ये १ પટલ છે. બબ્બે કિન્નર પટલ છે. બન્ને જિંપુરૂષ પટેલે છે. બબ્બે વૃષભ पटस। छे. सिद्धार्थ ५८८ छ. मी या ५८ 'सव्यरयणामयाइं जाव पडिरूवाई' सर्वात्मना रत्नभय छे. अनेमन्थी ने प्रति३५ सुधीन। જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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