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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ४ सू. १२७ एकेन्द्रियादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् ११५५ याणं कयरेकयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचिंदिया एतेषां वक्ष्यमाणक-द्वि-त्रि- चतुःपञ्चेन्द्रियाणां कतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा जीवाः इत्यल्पबहुत्वविषयः प्रश्नः भगवानाह - गौतम ! एषु मध्ये सर्वभ्यः स्तोकाः पञ्चेन्द्रियाः संख्येययोजनकोटिकोटिप्रमाणविष्कम्भसूची प्रमितप्रतरासंख्येयभागवर्त्य संख्येयश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् । चतुरिन्द्रिया विसेसाहिया' पञ्चेन्द्रियापेक्षया चतुरिन्द्रिया विशेषाधिकाः विष्कम्भसूच्यास्तेषां प्रभूतसंख्येययोजनएकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्दिय, और पंचेन्द्रिय जीवों के बीच में कौन जीव किन जीवों की अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा 'बहुया वा' बहुत है कौन किनके 'तुल्ला वा' बराबर है ? कौन किनसे 'विसेसाहिया वा' विशेषाधिक है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचिंदिया' हे गौतम! इन जीवों के बीच में सब से कम पञ्चेन्द्रिय जीव है 'चउरिंदिया विसेसाहिया' इन पञ्चेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा चौइन्द्रिय जीव विशेषाधिक है । पञ्चेन्द्रिय जीवों को सब से अल्प जो बतलाया गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि ये पञ्चेन्द्रिय जीव संख्यात योजन कोटी कोटी प्रमाण विष्कम्भ सूची से प्रमित जो प्रतर का असंख्यातवां भाग है । उस असंख्यातवें भागवर्ती जो असंख्यात श्रेणिगत आकाश प्रदेशराशि है इस राशि प्रमाण हैं । इनकी अपेक्षा जो चतुरिन्द्रिय जीवों को विशेषाधिक कहा गया है उसका कारण ऐसा है कि ये जीव संख्यात ન્દ્રિય, દ્વીન્દ્રિય, તે ઇંદ્રિય, ચૌઇંદ્રિય અને પ ંચેન્દ્રિય જીવામાં કયા જીવા કયા જીવા ४२ता सदप छे ? म्या व या वो तो 'बहुया वा' वधारे छे ? आ अना ४२तां 'तुल्ला वा' जराजर छे भने अएण अना पुस्ता 'विसेसाहिया वा' विशेषाधि४ छे ? या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री छे - 'गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचि दिया' हे गौतम! या मधा भयोभां सौथी ओछा पंचेन्द्रिय व छे. 'चरिंदिया विसेसाहिया' मा यथेन्द्रिय वा रतां यार हैंद्रियवाजा वो વિશેષાધિક છે. પંચેન્દ્રિય જીવાને જે સૌથી અલ્પ કહેવામાં આવેલ છે, તેનું તાત્પર્ય એવુ છે કે-આ પંચેન્દ્રિય જીવા સંખ્યાત ચેાજન કાર્ટિકેટિ પ્રમાણુ વિષ્ણુ ભ સૂચિથી પ્રતરના જે અસંખ્યાતમા ભાગ છે. એ સખ્યાતમા ભાગ થતિ અસખ્યાત શ્રેણિગત જે આકાશ પ્રદેશ રાશિ છે, એ રાશિ પ્રમાણના છે. તેના કરતાં જે ચતુરિન્દ્રિય જીવાને વિશેષાધિક કહ્યા છે તેનું કારણ એવુ છે કે-એ જીવા સ.ખ્યાત યોજન કેટિકેટ પ્રમાણ વિષ્ણુમ્નસૂચિ છે, એ વિષ્ણુ I જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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