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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५७ विजयद्वारपार्श्वस्थितनैषेधिक्यानि० ९९ पुण्णा' सर्वोपधिपरिपूर्णाः, नानाविधैरनेकप्रकारकैः पञ्चवर्णे विविधवर्णोपेतैः प्रसाधनकभाण्डैश्च सौंषधिभिश्च बहुपरिपूर्णा इव तिष्टन्ति, 'सवरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वरत्नमया अच्छाः-स्फटिकाकाशवदति स्वच्छाः श्लक्ष्णाः घृष्टाः मृष्टाः निर्मलाः निरजस्काः निष्पङ्काः निष्ककटच्छायाः सप्रभाः सोद्योताः समरीचिकाः प्रासादीयाः दर्शनीयाः अभिरूपाः प्रतिरूपाः । 'तेसिणं तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरतोऽग्रभागे 'दो दो मनोगुलियाओ पन्नत्ताओ' द्वे द्वे मनोगुलिके-पीठिके प्रज्ञप्ते-कथिते, मनोगुलिकानाम पीठिका, तदुक्तम्-मनोगुलिका पीठिकेति । 'तासु णं मनोगुलियासु' तासु खलु मनोगुलिकासु-पीठिकासु 'बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पन्नत्ता' बहवः सुवर्णरुप्यमयाः फलकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः 'तेसु णं सुवण्णरुप्पमएसु फलएस' तेषु खलु सुवर्णरूप्यमयेषु फलकेषु 'बहवे वइरामया णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिया हेम जाव गयदंतगसमाणा पन्नत्ता' बहवो वज्रमया नागदन्तका मुक्ताजालान्तरोत्सृत ष्ठकनानाविध पांचवों के प्रसाधनभाण्डों से एवं 'सवोसधिपडिपुण्णा' सवौं षधियों से भरे हुऐ हैं 'सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' ये सुप्रतिष्ठक सर्वात्मना रत्नमय है तथा अच्छ से लगाकर प्रतिरूपतक के समस्त विशेषणों से युक्त है। 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मनो गुलियाओ पन्नत्ताओ' इन तोरणों के आगे दो दो मनो गुलिकाएं-पीठिकाएं-कही गई है। 'तासु णं मनोगुलियासु' उन मनोगुलिकाओं के ऊपर 'बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता' अनेक सुवर्ण और चांदी के फलक-पटिये रखे हुए है। तेसु णं सुवएणरूप्पमएसु फलएसु' इन सुवर्ण रुप्यमयफलकों में 'बहवे वइरामया णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिया हेम जाव गयदंतगसमाणा पन्नत्ता' अनेक वज्रमय नाग दंतक-खूटियां-लगी हुइ है ये खुटियां मुक्ताजालों २. पायवाणु प्रसाधन पासणथी तथा 'सव्योसहि पडिपुण्णा' सवेषिधियोथी अरेसा छ. 'सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' से प्रतिष्४ सय પ્રકારે રત્નમય છે. તથા અચ્છથી લઈને પ્રતિરૂપ સુધીના સઘળા વિશેષણોવાળા छ. 'तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो मनोगुलियाओ पन्नत्ताओ' येतोशानी भाग ५० भनाशुलिस- पास ४९स छ. 'तासु णं मनोगुलियास' से भनाशुसिमानी ५२ 'बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता' मने सोना यहीना इस।-पाटियायो रामपामा माता छ. 'तेसु णं सुवण्णरुप्पा मयेसु फलएसु' मा सुपर्ण मने यहीभय पाटियामामा 'बहवे वइरामयणागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिया हेम जाव गयदंतगसमाणा पण्णत्ता' मने भय नाम: જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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