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जीवाभिगमसूत्रे
राणि न मनुष्यवद्विनश्वराणि इति । ' एवं जाव अणुत्तरोववाइया' एवं यावदनुत्तरोपपातिकानामपि ज्ञेयानि । सम्प्रति उच्छ्वास प्रतिपादनम् - 'सोहम्मीसाणदेवाणं केरिया पोग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति ? गोयमा ! जे पोग्गला इट्ठा कंता जाव एएसि उस्सासत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववाइया' एवं आहारत्ताएवि जाव अणुत्तरोववाइया' सौधर्मे शानयोः देवानां कीदृशाः पुद्गलाः उच्छ्रवासतया परिणमन्ति, भगवानाह - गौतम ! ये पुद्गलाः इष्टाः कान्ताः प्रियतरा मनोज्ञा मन आमतरास्ते पुद्गलास्तेषां देवानामुच्छ्वासतया परिणमन्ति, कहे गये है । 'एवं जाव अणुत्तरोववाइया' इसी तरह से सनत्कुमार से लेकर अनुत्तरोपपातिक देवों तक के भी शरीर स्थिर मृदुस्पर्श वाले स्थिर स्निग्ध स्पर्श वाले एवं स्थिर कोमल स्पर्श वाले कहे गये है । मनुष्य की तरह विनश्वर स्पर्शवाले नहीं कहे गये हैं । 'सोहम्मीसाणदेवाणं केरिसया पुग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति' हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान देवों के कैसे पुद्गल उच्छ्वासरूप में परिणमते हैं ? 'गोयमा ! जे पोग्गला इट्ठा कंता, जाव ते तेसिं उस्सासत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववातिया' हे गौतम! जो पुद्गल इष्ट कान्त, यावत् प्रियतर मनोज्ञ और मन आम होते हैं वे पुद्गल ही इन देवों के उच्छ्वास रूप से परिणमते है । इसी तरह से सनत्कुमार से लेकर अनुत्तरोपपातिक देवों के भी ऐसे ही पुद्गल उनके उच्छ्वास रूप से परिणमते है ऐसा जानना चाहिये 'एवं आहारत्ताए वि जाव अणुत्तरोववातिया' इसी तरह से जो पुद्गल इष्ट कान्त, आदि विशेषणों स्पर्शवाणा भने स्थिर अभण स्पर्शवाणा उडेवामां आवेला छे. 'एवं जाव अणुत्तरोववाइया' ४ प्रमाणे सनत्कुमारथी सहने अनुत्तरोपयातिना शरीर સ્થિર મૃદુ સ્પર્શી વાળા કહેવામાં આવેલ છે. મનુષ્યની જેમ વિનશ્ચર સ્પ वाजा उहेस नथी. 'सोहम्मीसाणदेवाणं केरिसया पुग्गला उस्सासत्ताए परिण સ્મૃતિ' હે ભગવન્ ! સૌધમ અને ઈશાન દેવોના કેવા પુદ્ગલા ઉચ્છવાસ ३५थी परिशुभे छे ? 'गोयमा ! जे पोम्गला इट्ठा, कंता, जाव ते तेसि उस्सासत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववाइया' हे गौतम! ने युद्दगोष्टि, अन्त, યાવત્ પ્રિયતર મનેાજ્ઞ અને મન આમ હોય છે. એ પુર્વાંગલેાજ એ દેવાના ઉચ્છવાસ રૂપે પરિણમે છે. એજ પ્રમાણે સનત્કુમારથી લઇને અનુત્તર પપાતિકના દેવાના પણ એવાજ પુદ્ગલે તેમના ઉચ્છવાસ રૂપથી પરિણમે છે. તેમ સમ ४. ' एवं आहारत्ताए वि जाव अणुत्तरोववाइया' भेन प्रमाणे ने युद्दगतेो ઇષ્ટ, કાન્ત, વિગેરે વિશેષણા વાળા હોય છે. તે જ પુદ્દગલે સૌધથી લઇને
જીવાભિગમસૂત્ર