SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू. ५७ विजयद्वारपार्श्वस्थितनैषेधिक्याः नि० ९७ संदष्ट बहुपरिपूर्णानीव, अच्छा निर्मलाः शुद्धस्फटिकवत् त्रिच्छटिता अतएव संदष्टाः नखाः मुसलादिभिश्चुंबिता येषां ते तथा, अच्छेत्रिच्छटितैः शालितन्दुलैः नखसंदष्टैर्वहुपरिपूर्णानीव इति अच्छत्रिच्छटितशालितन्दुलनख संदष्ट बहुपरिपूर्णानीव 'चेव चिट्ठति' एव तिष्ठन्ति, 'सव्व जंबूणयमया अच्छा जाव पडिरूवा ' सर्वात्मना जाम्बूनदमयानि अच्छानि श्लक्ष्यानि घृष्टानि मृष्टानि निर्मलानि नीरजस्कानि निष्पङ्कानि निष्कङ्कटच्छायानि सप्रभाणि सोद्योतानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि, 'महया महया रहचकसमाणा पन्नत्ता समणाउसो' अतिशयेन महान्ति रथचक्रसमानानि प्रज्ञप्तानि हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ! 'तेर्सि णं तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरतः - अग्रभागे ' दो दो पातीओ पन्नताओ द्वे द्वे पायौ - पात्रविशेषरूपे प्रज्ञप्ते 'ताओ णं पातीओ अच्छोदयपरिपुण्णाओ विव चिति' ताः खलु पात्र्यः अच्छोदकपरिपूर्णाः 'णाणाविहस्स जाने के कारण आकाश एवं शुद्ध स्फटिक के जैसे शालि-चावलों से परिपूर्ण भरे हुए हैं ये चावल मुसलादि द्वारा जिनकी अंगुलियों के नख चुम्बित हुए है - घिसे गये है, ऐसे स्त्र्यादिजनों द्वारा साफ किये गये हैं 'सव्व जंबूणयमता अच्छा जाव पडिरूवा महता महता रहचक्कसमाणा पन्नत्ता समाणाउसो' वे थाल सर्वात्मना सुवर्णमय है । अच्छ से लेकर प्रतिरूपान्त तक के विशेषणों वाले हैं तथा जैसा रथका पहिया बहुत विशाल होता है वैसे ये थाल भी विशाल है । 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पातीओ पन्नत्ताओ' उन तोरणों के सामने दो दो पात्री कही गई है । 'ताओ णं पातीओ अच्छोदय पडिहत्थाओ' ये दोनों पात्रियों स्वच्छ पानी से भरी हुई 'णाणाविध पंच वण्णस्स फल हरियस बहुपsिyण्णाओ विव चिर्हति' तथा नाना प्रकार के पांच કરવાથી આકાશ અને શુદ્ધ સ્ફટિકના જેવા ચાખાથી પૂર્ણ રીતે ભરેલા છે. એ ચેાખા સાબેલા વિગેરેથી જેની આંગળીયાના નખા ચુસ્મિત થયા છે. તેવા सांणेसाथी छडीने साई वामां आवे छे. 'सव्व जंबूणयमया अच्छा जाव पडरूवा महता महता रहचक्कसमाणा पन्नत्ता समणाउसो, मी थाणीयो સ પ્રકારથી સુવર્ણમય છે. અને અચ્છથી લઇને પ્રતિરૂપ સુધીના વિશેષણા વાળી છે. તથા જેમ રથના પૈડા ઘણા વિશાળ હાય છે. એ રીતે આ થાળીયે पशु धाणी विशाण होय छे. 'तेसिं णं तोरणाणं पुरओ दो दो पातीओ पन्नत्ताओ' मे तोरणोनी साभे मम्मे यात्री उस छे. 'ताओ गं पातीओ अच्छोदयपडिहत्थाओ' यो भन्ने यात्रियों स्वच्छ पाणीथी लरेसी नेवी छे. 'णाणाविध पंचवण्णस्स फलहरियस बहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति' तथा भने अझरना पांय वशेवाजा जी० १३ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy