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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू.१२९ देवविमान पृथिव्याः बाहल्यादिकम् १०८५ उत्तरवेउच्चिए से जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागे उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं' एवं एक्क्का ओसारेत्ताणं जाव अनुत्तराणं एक्का रयणी' तत्र यानि तानि उत्तरवै क्रियाणि तानि जघन्येन अंगुलस्य संख्येयं भागं यावत् ( न तु - असंख्येयं तथाविधप्रयत्नाऽभावात् । उत्कर्षेण योजनशतसहस्रम् लक्षैकमित्यर्थः एवमेकैकमसाध्यै - यावदनुत्तराणाम्। नवरं - सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः उत्कर्षतो भवधारणीया षड्ररत्नयः, ब्रह्मलोकलान्तकयोः पञ्च महाशुक्रसहस्रारयोश्चत्वारः, आनतादिषु ase से जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागो' उत्तर वैक्रियरूप शरीर की जो जघन्य अवगाहना है वह अंगुल के संख्यातवे भाग प्रमाण होती है असंख्यातवें भाग प्रमाण नही होती है क्योंकि इस प्रकार के प्रयत्न का अभाव रहता है और 'उक्कोसेणं' उत्कृष्ट अवगाहना 'जोयणसयस हस्से' एक लाख योजन प्रमाण होती है 'एवं एक्केक्का ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तराणं एक्का रयणी गेविज्जणुत्तराणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे उत्तरवेउब्विया नत्थि' इस तरह आगे आगे कल्पों में एक एक कम करते जाना चाहिये यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की एक हाथ की अवगाहना रह जाती है तथा च सनत्कुमार माहेन्द्र कल्पों में उत्कृष्ट से भवधारणीय शरीर की अवगाहना छह रत्नि प्रमाण है ब्रह्मलोक लान्तक कल्पों में भवधारणीय शरीर की अवगाहना उत्कृष्ट से ५ रत्नि प्रमाण है महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में चार रत्नि प्रमाण उत्कृष्ट अवगाहना है और आनत प्राणत अच्युत इन कल्पों में उत्कृष्ट से भवधारणीय शरीर की अवगाहना जे से उत्तरवेउच्चिए से जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागे' उत्तर वैडिय રૂપ શરીરની જે જઘન્ય અવગાહના છે તે આંગળના સંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણની હાય છે. અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણવાળી હાતી નથી. કેમકે–એવા अहारना प्रयत्ननो अभाव रहे छे भने 'उक्कोसेणं' उत्ष्ट अवगाहना 'जोयण सयसहस्सं' से लाभ योजनप्रभाणुनी होय छे एवं एक्केक्का ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तराणं एक्का रयणी गेविज्जणुत्तराणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे उत्तरवेउव्विया नत्थि मे रीते आगण आगणना अर्थात् पछी पछीना उपोभांधी भे એક એછા કરતા કરતા યાવત્ સનત્કુમાર અને માહેન્દ્ર પેામાં ઉત્કૃષ્ટથી ભવધારણીય શરીરની અવગાહના છ ત્નિ પ્રમાણની હાય છે. બ્રહ્મલેક અને લાન્તક કલ્પમાં ઉત્કૃષ્ટથી ભવધારણીય શરીરની અવગાહના ૫ પાંચ નિ પ્રમાણની થાય છે. મહાશુક્ર અને સહુસાર નામના કલ્પોમાં ચાર રહ્નિપ્રમાણ ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના છે. તથા આનત પ્રાણત, આરણુ અને અચ્યુત આ કલ્પામાં જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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