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________________ १०३६ जीवाभिगमसूत्रे " माई तिन्निय पलिओमाई, अट्ठो सो चेव' देवानां स्थितिः आभ्यन्तरिकायाम्, अर्धनवमानि सागरोपमाणि पञ्च च पल्योपमानि माध्यमिकायामर्द्धनवमानि सागरोपमाणि चत्वारि पल्योपमानि बाह्यायान्तु - अर्ध नवमानि सागरोपमाणि त्रीणि पल्योपमानि अर्थः स एवाऽन्यत्सर्वं सनत्कुमारवत् । 'लंतगस्स वि जाव तओ परिसाओ' लान्तकस्यापि यावत् तिस्रः पर्षद : 'अभितरियाए परिसाए दो चैव साहस्सीओ, मज्झिमियाए चत्तारि देव साहस्सीओ पन्नत्ताओ, बाहिरियre छद्देवसाहसीओ पन्नत्ताओ' आभ्यन्तरिकपर्षदि द्वे एव सहस्रे माध्यमिकायां चत्वारि देव सहस्राणि बाह्यायां षट् सहस्राणि देवानां प्रज्ञप्तानि । 'ठिई की स्थिति ८ || सागरोपम और पांच पल्योपम की है मध्यपरिषदा के देवों की स्थिति ८ || पल्योपम और चार पल्योपम की है तथा बाह्यपरिषदा के देवों की स्थिति ८ || सागरोपम और तीन पल्योपम की है बाकी का और सब कथन 'अट्ठो सो चेव' के कथनानुसार सनत् कुमार प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये 'लंतगस्स वि जाव तओ परिसाओ' लान्तक देव की भी यावत् तीन परिषदाएं हैं। 'अभितरियाए परिसाए दो देव साहस्सीओ पन्नताओ' आभ्यन्तर परिषदा में दो हजार देव हैं 'मज्झमियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ प०' मध्यपरिषदा में चार हजार देव हैं । 'बाहिरियाए छदेवसाहस्सीओ प० ' बाह्यपरिषदा में ६ हजार देव हैं । लान्तक कल्प ब्रह्मलोक कल्प के ऊपर यावत् उससे अनेक योजन दूर पर है यहां पर पचास हजार विमान है ईशान कल्प की तरह यहां अङ्कावतंसक स्फटिकावतंसक, આભ્યન્તર પરિષદાના દેવોની સ્થિતિ ૮૫ સાડા આઠે સાગરાપમ અને પાંચ પડ્યેાપમની છે. મધ્યમા પરિષદ્યાના દેવોની સ્થિતિ ૮ાા સાડા આઠ સાગર - પમ અને ચાર પચેાપમની છે. તથા બાહ્ય પરિષદાના વેાની સ્થિતિ દ્વા સાડા આઠ સાગરોપમ અને ત્રણ પત્યેાપમની છે. આ શિવાય ખાકીનુ બીજુ तमाम अथन 'अठ्ठो सो चेव' मे वयनना उथन प्रमाणे सनत्कुमारना अशुभ अहेवामां मवेत अथन प्रमाणे सभवु 'लंगतस्स वि जाव तओ परिसाओ' सान्त हेवनी पशु यावत् ऋशु परिषहाय छे 'अब्भितरियाए परिसाए दो देव साहसीओ पण्णत्ताओ' आल्यन्तर परिषहाभां मे इतर देवे छे. 'मज्झि मियाए चत्तारि देव साहस्सीओ पण्णत्ताओं' मध्यमा परिषहाभां यार इन्भर देवे छे. 'बाहिरियाए छ देव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' मा परिषहाभां छ इन्तर ધ્રુવે છે. લાન્તક કલ્પ બ્રહ્મલેક કલ્પની ઉપર યાવત્ તેનાથી અનેક યાજન દૂર છે. આ કલ્પમાં ૫૦ પચાસ હજાર વિમાના છે. ઇશાન કલ્પના કથન જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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