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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ११९ शक्रादिदेवानां परिषदादिनि० १०२९ पन्नत्ता मज्झमियाए छपलिओ माई बाहिरियाए पंचपलिओ माई ठिई पण्णत्ता' आभ्यन्तरिकायां पर्षदि सप्त० मध्यमिकायां षट्० बाह्यायां पञ्चपल्योपमानि देवानां स्थितिः प्रज्ञप्ता इति ।
'देवीणं पुच्छा ०' हे भदन्त ! देवीनामीशान देवेन्द्रविमाने किती स्थितिः इतिः पृच्छाssस्ते ? भगवानाह - हे गौतम ! 'अब्भितरियाए साइरेगाई पंचपलिओ माई मज्झमियाए परिसाए चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता' आभ्यन्तरिकायां पर्षदि सातिरेकपल्योपमानि माध्यमिकायां चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'बाहिरियाए परिसाए तिन्नि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता' बाह्यायां पर्षदि तु त्रीणि पल्योपमानि देवीनां स्थितिः प्रज्ञप्ताः, इति । 'अट्ठो तहेव भाणि - न्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है । 'मज्झमियाए छपल्लिओ माई बाहिरियाए पंच पलिओ माई ठिती पण्णत्ता' मध्य परिषदा के देवों की ६ पल्योपम की स्थिति कही गई है बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति पांच पत्योपम की कही गई है 'देवीणं पुच्छा' हे भदन्त । ईशान देवेन्द्र के विमान में देवियों की स्थिति कितनी कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अभितरियाए साइरेगाई पंच पलिओ माई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए तिष्णि पलिओ माई ठिती १०' हे गौतम! आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति पांच पल्योपम की कही गई है मध्य परिषदा की देवियों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है और बाह्यपरिषदा की देवियों की स्थिति
પુળ્વત્તા ઇશાન દેવની આભ્યન્તરા પરિષદામાંના દેવાની સ્થિતિ સાત પત્સ્યાयमनी उडेवामां आवे छे. 'मज्झिमियाए छ पलिओ माई बाहिरियाए पंच पलिओ माई ठिती पण्णत्ता' मध्यम परिषहाना देवोनी स्थिति छ पयोभनी કહેવામાં આવેલ છે. અને ખાદ્ય પરિષદાના દેવાની સ્થિતિ પાંચ પચેપમની उस छे. 'देवीणं पुच्छा' हे भगवन्! शांन देवेन्द्रना विभानभां देवियोनी સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'अभितरियाए साइरेगाई पंच पलिओ माई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए तिष्णि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता' હે ગૌતમ ! આભ્યન્તર પરિષદાની દૈવિયાની સ્થિતિ પાંચ પડ્યેાપમની કહેવામાં આવેલ છે. મધ્યમા પરિષદાની દૈવિયાની સ્થિતિ ચાર પામની કહેવામાં આવેલ છે. અને ખાદ્ય પરિષદાની દૈવિયાની સ્થિતિ ત્રણ પત્યેાપમની 'हेवामां आवेस छे. 'अट्ठो तहेव भाणियव्वो' मा शिवाय जाडीनु सध
જીવાભિગમસૂત્ર