SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 894
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮૮૨ जीवाभिगमसूत्रे पर्यन्त परिक्षिप्तस्य सह किंकिणीभिः क्षुदघण्टिकाभिः वर्तन्ते इति स किं किणीकानि यानि हेमजालानि हेममयदामसमूहास्तैः सर्वासु दिनु पर्यन्तेषु बहिः प्रदेशेषु परिक्षिप्तो व्याप्त इति सकिंकिणीहेमजालपर्यन्त परिक्षिप्तस्तस्य तथा'हेमवयखेत्तचित्तविचित्ततिणिस कणगनिज्जुत्तदारुयागस्स' हैमवतक्षेत्रचित्रविचित्र तैनिशककनकनियुक्तदारुकस्य, हैमवतं क्षेत्र हिमवत्पर्वतभावि चित्र विचित्रं मनोहारिचित्रोपेतं तैनिशं तिनिशदारुसंबन्धी कनकनियुक्तं कनकविच्छुरित दारुकाष्ठं यस्य सहैमवत् क्षेत्रचित्रविचित्र तैनिशकनकनियुक्त दारुकाष्ठस्तस्य, तथा-'सुपिणद्धारक मंडल धुरागस्स' सुपिनद्धारकमण्डलधुराकस्य, सुष्ठु-अतिशयेन सम्यक् पिनद्धमरकमण्डलं धुरा च यस्य स सुपिनद्धारकमण्डलधुराकस्तस्य, तथा-'कालायसमुकयणेमिजंतकम्मस्स' कालायस सुकृतनेमियन्त्रकर्मणः, कालायसेन जात्यलोहित मुष्ठु-अतिशयेन कृतं नेमे बाह्यपरिधेयन्त्रस्य च-अरकोपरि फलकचक्र वालस्य कर्म यस्मिन् स कालायस सुकृत नेमियन्त्रकर्मा तस्य, आइण्णवरतुरग'सणंदिघोसस्स' नन्दिघोष द्वादश तृों के निनादों से युक्त हो 'सखिखिणि हेमजालपेरंतपरिखित्तस्स' क्षुद्रघंटिकाओं से युक्त हैमीमालाओं द्वारा जो सब ओर व्याप्त हो-'हेमवयरखेत्तचित्तविचित्त. तिणिसकणगनिज्जुतदारुयागस्स' तथा हिमवत पर्वत के तिनिश वृक्ष के काष्ठ से जो कि चित्रविचित्र-मनोहारि चित्रों से युक्त और सुवर्ण खचित बना हुआ है 'सुपिणिद्धारकमंडलधुरागस्स' जिसके पहियों में आरे बहुत ही अच्छी तरह से लगे हों तथा जिसकी धुरा बहुत मजबूत हो । 'कालायससुकयणेमिजंत कम्मस्स' चक्रकी धार जमीन की रगड से घिस न जावे तथा चक्रके पटिया आपस में अलग अलग न हो जावें इस अभिप्राय से जिसके पहियों पर लोहे की दन्त मावेस प्रभापित सुं२-३ थी युक्त होय 'सणंदी घोसस्स' नधोष मार तुयाना मा वाणी हाय 'सखिंखिणिहेमजालपेरंतपरिविखत्तम्स' नानी નાની ઘંટડિયોથી યુક્ત સુવર્ણની માળાઓ દ્વારા જે બધી તરફથી વ્યાસ हाय छे. 'हेमवयरबेत्तचित्तविचित्ततिणिसकणगनिज्जुत्तदारुयागस्स' तथा हिमत પર્વતના તિનિશ વૃક્ષના લાકડાથી કે જે ચિત્રવિચિત્ર મનેહારિ એવા सु४२ यित्रोथी युटत भने सोनाना ताराथी मा हाय 'सुपिणिद्धारकमंडल धुरागस्स' ना पैंमा मारा। घlar भसप्ताथी सारी शत बागेसा हाय तथा नी धुरा- घr भभूत हाय 'कालायससुकयणमिजत कम्मस्स' पेंडानी धार भीनमा सावायी घसा न य तथा पैंडाना all એક બીજાથી જુદા ન પડી જાય એ હેતુથી જેના પર લોખંડની પાટી ચડાવ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy