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________________ ८७६ जीवाभिगमसूत्रे 'मल्लियपुडाण वा' मल्लिकापुटानां वा, मल्लिका 'मोघरा' इति लोकप्रसिद्धा 'णो मल्लियपुडाण वा' नवमल्लिका पुटानां वा 'वासंतियपुडाण वा' वासन्तिकपुटानां वा सुगन्धयुक्ता लताविशेषः 'केयई पुडाण वा' केतकीपुटानां वा, केतकी 'केवडा' लोकाप्रसिद्धा, 'कप्पूरपुडाण वा' कर्पूरपुटानां वा, 'अणुवायंसि' एतेषां कोष्ठपुटादीनामनुवाते आधायकविवक्षित पुरुषाणामनुकूले वाते वाति सति 'उब्भिज्जमाणाण य' उद्भिद्यमानानां समुद्घाटयमानानाम् च शब्दः सर्वत्रापि समुच्चये, 'णिब्भिज्जमाणाण य' निर्भिद्यमानानाम् अतिशयेन भिद्यमानानां त्रोटयमानानाम् 'कोटेज्जमाणाण वा' कुटयमानानां वा, अत्र पुटैः परिमितानि यानि कोष्ठादि गन्धद्रव्याणि तानि अपरिमेये परिमाणोपचारात् कोष्ठपुटानीत्युच्यन्ते तेषां कुटयमानानाम् उदूखलादौ कुटयमानानामिति । 'रुविज्जमाणाण वा' इति श्लक्ष्णखंडी क्रियमाणानाम् 'उक्किरिज्जमाणाण वा' उत्कीर्यमाणानाम् - कोष्ठादिकपुटानां कोष्ठादिद्रव्याणां वा उत्कीर्यमाणाहै 'मल्लियपुडाण वा' जैसी गन्ध मल्लिका - मोघरा के - पुष्प पुटों की होती है 'नोमल्लिपुडाण वा' जैसी गन्ध नवमल्लिका के पुष्पपुटों की होती है 'वासंतियपुडाण वा' जैसी गन्धवासन्तिलता के पुष्पपुटों की होती है 'केयईपुडाण वा' जैसी गन्ध केवडे के पुटों की होती है 'कपूरपुडाण वा' जैसी गन्ध कर्पूर के पुटों की होती है इन समस्त पुटों की गन्ध 'अणुवायंसि' जब कि अनुकूलवायुचल रही हो अर्थात् आधायक पुरुष जिस तरफ बैठे हो उसी तरफ इनकी गन्ध को लेकर हवा वह रही हो और ये समस्त गन्ध पुट 'उब्भिज्जमाणाण य णिविभज्जमाणाण य कोटेज्जमाणाणय' उस समय उद्घाटित उघाडे जा रहे हो, अतिशय रूप से तोडे जारहे हो ऊखल आदिमे कूटे जा रहे हो 'संविज्ज माणाणवा' छोटे २ इनके टुकडे किये जा रहे हो, उक्किरिज्ज युडोनी नेवी गंध होय छे. 'वास'तिय पुडाणवा' वासति सताना पुण्य युटो नी नेवी गंध होय छे. 'केयइपुडाणवा' ठेवडाना चुटोनी देवी गंध होय छे 'कपूरपुडाणवा' अरना चुटोनी लेवी गंध होय छे, या मधान चुटोनी गंध 'अणुवाय 'सि' न्यारे अनुज वायु वात होय अर्थात् वास बेनार पु३ष તરફ બેઠા હાય એ તરફની હવા ચાલી રહી હોય અને આ સઘળા ગંધ પુટો 'उब्भिज्ज माणाणय णिब्भिज्ज माणाणय कोटेज्जमाणाणय' थे सभये उधाडवाभां આવેલ હાય તે લંઘપુટને અતિશય પણાથી તેાડવામાં આવતા હોય ખાણિયા विगेरेमां मांडवामां भावता होय 'संविज्ज माणाणवा' नाना નાના તેના टुडा उता होय 'उकिकरिज्जमाणाणवा' तेने ५२ उडाडवामां भावता होय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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