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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५३ वनषण्डादिकवर्णनम् ८४७ जुगलिया णिच्चं विणमिया णिच्चं पणमिया णिच्चं कुसुमिय मउलिय लवइय थवtय गुम्मिय गोच्छिय जमलिय जुगलिय विणमिय पणमिय सुविभत्त पंडिमंजरि डिसगधरा' नित्यं कुसुमिता नित्यं मुकुलिता नित्यं पल्लविता : नित्यं स्तकिता नित्यं गुल्मिता नित्यं गुच्छिता नित्यं यमलिता नित्यं युगलिता नित्यं विनमिता नित्यं प्रणमिता नित्यं कुसुमित मुकुलित पल्लवित स्तवकित गुल्मित गुच्छित यमलितयुगलितविनत प्रणतसुविभक्त पिण्डम अर्थवतंसकधराः, इतिच्छाया । व्याख्यातपूर्वमिदं प्रकरणम् एतस्य व्याख्यानं पूर्ववदेव ज्ञातव्यम् । तथा'सुयवरहिणमयणसला गाकोइलकोरगभिंगारगको डलग जीवंजीवगणं दिमुहक विलपिंगलक्ख कारंडवचक्कवा गकलहंग सारसाणेगसउणगणमिहुण विचा रियस दुन्नइयनिच्चं विणमिया, निच्चं पणमिया' ये वृक्ष सदा कुसुमित रहते है नित्य मुकुलित रहते है, नित्यपल्लवित रहते है नित्य स्तबकित रहते है नित्य गुल्मित रहते है नित्य गुच्छित रहते है नित्य यमलित रहते है । नित्य युगलित रहते है नित्य विनमित रहते है एवं नित्य प्रणमित रहते है इस तरह से नित्यकुसुमित, मुकुलित पल्लवित, स्तबकित गुल्मित गुच्छित यमलित युगलित विनमित एवं प्रणमित बने हुए ये वृक्ष सुविभक्त पिण्डवाली मंजरीरूप अवतंसक को धारण किये रहते है इन पदों का अर्थ पूर्व प्रकरण में व्याख्यात हो चूका है । 'सुयबरहिण मयणसलागा कोइलकोरग - शुकबर्हिण मदन शलाका कोकिलकोरक' इत्यादि, इन वृक्षों के उपर शुक के जोडे मयूरों के जोडे, मदनशलाका - मेना के जोडे, कोकिल के जोडे, चक्रवाक के जोडे, कलहंस के जोडे, सारस के जोडे, इत्यादि अनेक पक्षियों मिया' या वृक्ष। अयम सुमित रहे छे. नित्य भुडुसित रहे छे, नित्य પલ્લવિત રહે છે, નિત્ય સ્તખકિત રહે છે. નિત્ય ગુમિત રહે છે, નિત્ય શુચ્છિત રહે છે. નિત્ય યમલિત રહે છે. નિત્ય યુગલિત રહે છે. નિત્ય વિનમિત રહે છે- અને નિત્ય પ્રણમિત રહે છે. આ રીતે નિત્ય कुसुमित, भुड्डुसित, पल्लवित, स्तमम्ति, शुस्मित शुच्छित, यभक्षित, યુગલિત, વિનમિત, તેમજ પ્રણમિત ખનેલા આ વૃક્ષ। સુવિભકત પિંડવાળી મંજરી રૂપ અવતંસક-વસ્ત્રને ધારણ કરીને રહે છે. આ શબ્દોના અર્થ पहेसां सूत्रभां अताववामां भावी गये छे. 'सुयबरहिण मयणसलागा कोइल कोरग सुकबरहिण मदनसलाका कोकिल कोरक' इत्यादि मे वृक्षोनी ५२ શુકના જોડલા, મયૂરાના જોડલા, મદનશલાકા-મેનાના જોડલા કાયલના જોડલા, ચક્રવાકના જોડલા, કલહંસના જોડલા સારસના જોડલા વિગેરે અનેક પ્રકારના જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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