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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५३ वनपण्डादिकवर्णनम् ८३७ 'देसूणाई दो जोयणाईं चक्कवाल विक्खभेणं' सचैकैको वनपण्डो देशोने योजने चक्रवालविष्कम्भेण 'जगती समए परिक् खेखेण' जगती समको जगत्याः समानः परिक्षेपेण, स च वनपण्डः परिक्षेपेण जगती परिमाण इत्यर्थः । स च वनपण्डः कथं भूतस्तत्राह - 'किण्हे' इत्यादि, 'किण्हे' कृष्णः छाया प्रधानत्वात्, इह खलु वृक्षाणां प्रायो मध्यमे वयसि वर्त्तमानानि पत्राणि नीलत्वबाहुल्येन कृष्णानि भवन्ति तादृशपत्र संलब्धत्वात् वनपण्डोऽपि कृष्णः । न चोपचारमात्रस्वाद् वनपण्डः कृष्ण इति व्यवहियते किन्तु कृष्णरूपेणावभासमानत्वात्कृष्ण स्तत्राह - 'किण्होभासे' कृष्णावभासः, यावत्के भागे कृष्णानि पत्राणि सन्ति तारके भागे सवषण्डः कृष्णोऽवभासते, अतः कृष्णोऽवभासो यस्य स कृष्णाव - भासो वनपण्डः 'जाव अणेग सगडरह० ' इत्यादि, अत्र यावस्पदग्राह्याणि पदानि यथा - 'नीले नीलोभासे हरिए हरिओमासे सीए सीओमासे णिद्धे णिदोभासे दो जोयणाई चक्कवाल विक्खंभेणं जगतीसमए परिक्खेवेणं' यह वन खण्ड कुछ कम दो योजन का है और इसका वनखण्ड विष्कम्भ जगती के चक्रवाल विष्कम्भ के जैसा है वह वनखण्ड किस प्रकार का है उसका वर्णन करते है ० 'किन्हे किण्होभा से जाव अणेग सगडरह ० " इत्यादि । छाया प्रधान होंने से यह वनखण्ड कृष्ण है वृक्षों के प्रायः - मध्यमवय में वर्तमान पत्र नील होते है इस कारण से उस वनखण्ड को कृष्ण कहा गया है क्यों कि इस अवस्था में वह कृष्ण रूप से अवभासित होता है वही बात 'किण्होभासे' इस पद द्वारा सूचित हुई है। जितने भाग में उस वनषण्ड में कृष्ण पत्र है उतने भाग में वह वनखण्ड कृष्णरूप से प्रतिभासित होता है। यहां यावत्पद से जिन विशेषणों का ग्रहण हुआ है उन विशेषणों की व्याख्या इस 'देसूणाई दोजोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं जगती समए परिवखेबेणं' या वनખંડ કંઈક કમ એ ચેાજના હોય છે, અને તેનું ચક્રવાલ વિષ્ણુભ જગતીના ચક્રવાલ વિષ્ણુભની જેવા છે. તે વનખંડ કેવા પ્રકારના છે ? તેનુ હવે સૂત્રકાર वन पुरे छे. 'किण्हे किन्होभासे जाव अणेग सगड रह०' इत्याहि छाया प्रधान હોવાથી આ વનખંડ કૃષ્ણ વર્ણનું છે. વૃક્ષેાના પત્રા પ્રાયઃમધ્યમ અવસ્થામાં વર્તમાન હોય ત્યારે નીલવર્ણનું હોય છે. આ કારણથી એ વનખંડને કૃષ્ણ કહ્યું છે. કારણકે એ અવસ્થામાં તે કાળા વણૅથી શેાભાયમાન હોય છે, એજ વાત 'किण्होभासे' से यह द्वारा सूयवेस छे भेटला लागमां मे वनखंडमां पृष् પત્રા હોય છે. એટલા ભાગમાં એ વનખંડ કૃષ્ણ વર્ષોંથી પ્રતિભાસિત થાય છે. અહિયાં યાવપદથી જે વિશેષણાના સંગ્રહ થયેા છે, એ વિશેષણાની વ્યાખ્યા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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