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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५१ द्वीपसमुद्रनिरूपणम् ७९३ द्वीपसमुद्राणा मायादि परिमाण विषयस्तृतीयः प्रश्नः, 'कि संठियाणं भंते ! दीवसमुद्दा ' किं संस्थिताः खलु भदन्त ! द्वीपसमुद्राः, किं कीदृशं संस्थितं - संस्थानं येषां ते किं संस्थिता इति संस्थानविषयकः चतुर्थः प्रश्नः, 'किमागार भावपयोडाराणं भंते ! दीवसमुद्दा पन्नत्ता' किमाकार भावप्रत्यवताराः खलु भदन्त ! दीवसमुद्दाः प्रज्ञप्ताः, आकारभाव स्वरूप विशेषः कस्याकारभावस्य प्रत्यवतारो येषु ते किमाकारभावमत्यवतारा इति द्वीपसमुद्राणां स्वरूप विषयकः पञ्चमप्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादिया समुद्दा' जम्बूद्वीपादिका द्वीपाः, जम्बूद्वीप आदि येषां ते जम्बूद्वीपादिकाः जम्बूप्रभृतयो द्वीपा इत्यर्थः, लवणादिकाः समुद्राः लवणसमुद्र आदि येषां ते लवणसमुद्रादिकाः- लवणसमुद्रप्रभृतयः समुद्रा इत्यर्थः एतावता प्रमाण के सम्बन्ध में है । 'किं सठिया णं भंते' दीवसमुद्रा' उन द्वीप समुद्रों का हे भदन्त ! संस्थान आकार कैसा है ? यह उनके संस्थान के विषय में प्रश्न है । तथा - 'किमाकार भाव पडोयारा णं भंते दीव समुद्रा पन्नत्ता' द्वीप समुद्रों का हे भदन्त ! स्वरूप क्या है ? ऐसा यह पांचवां प्रश्न उनके स्वरूप विशेष के विषय में है इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभुश्री गौतम से कहते हैं - 'गोयमा जंबूहीवाइया दीवा लचणाइया समुद्रा' हे गौतम ! जम्बूद्वीप हैं आदि में जिन्हों के ऐसे तो द्वीप है और लवणसमुद्र हैं आदि में जिन्हों के ऐसे समुद्र है। यहां पर श्री गौतमस्वामीने प्रभुश्री से सर्वप्रथम द्वीपसमुद्र किस स्थान पर है ? यह प्रश्न किया है। पर प्रभुश्री ने ऐसा उत्तर क्यों दिया कि जम्बूद्वीप आदि द्वीप है । और लवण समुद्र आदि समुद्र है। बाततो ठीक है पर इस तरह का जो नहीं व्यायाम विगेरेना संबंधां उरेल छे. 'कि संठिया णं भंते । दीवस मुद्दा ' હે ભગવન્ એ દ્વીપ સમુદ્રોને આકાર કેવા છે ? આ પ્રશ્ન તેના સંસ્થાનના સંબંધમાં કરેલ છે. तथा 'किमाकार भाव पडोयाराणं भंते! दीवसमुद्दाणं पण्णत्ता' हे भगवन् यो द्वीप समुद्रोनु स्व३५ ठेवु छे ? मे रीतने! आ પાંચમા પ્રશ્ન તેના સ્વરૂપ વિશેષના સંબંધમાં પૂછેલ છે. આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં अनुश्री गौतमस्वामीने हे छे है 'गोयमा ! जंबूद्दीवाइया दीवा लवणाइया समुद्दा' हे गौतम! कंजूद्वीप नेमां याहि तां मुख्य छे सेवा भने દ્વીપા છે. લવણ સમુદ્ર જેની આદિમાં છે એવા સમુદ્રા છે. અહીયાં શ્રીગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને સૌથી પહેલાં દ્વીપ સમુદ્રો કયા સ્થાન પર આવેલ છે? એ પ્રમાણેના પ્રશ્ન પૂછેલ છે. પરંતુ પ્રભુશ્રીએ એવો ઉત્તર કેમ આપ્યું કે જમૂદ્રીપ વિગેરે દ્વીપેા છે અને લવણ સમુદ્ર વિગેરે સમુદ્રો છે. તમારૂ जी० १०० જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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