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________________ ७५४ जीवाभिगमसूत्रे देवीशतं प्रज्ञप्तम्, 'बाहिरियाए परिसाए पण्णवीस देविसयं पन्नत्त' बाह्यायां जाताभिधानायां पर्षदि पञ्चविंशत-पञ्चविंशत्यधिकं देवीशतं प्रज्ञप्तम् इति पर्षद्विषयकमुत्रमिति । सम्प्रति-धरण पर्षत् स्थित देव देवीनां स्थितिः दर्शयितुमाह'धरणस्स णं' इत्यादि, 'धरणस्स णं रन्नो' हे भदन्त ! धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य 'अभितरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां पर्षदि 'देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' देवानां कि यन्तं कालं स्थिति:-आयुष्य कालं:- प्रज्ञप्ता, तथा-'मज्झिमियाए परिसाए' माध्यमिकायां पर्षदि 'देवाणं कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता तथा 'बाहिरियाएपरिसाए' जाताभिधानायांपर्षदि 'देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नता देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता कथिता तथा-'अभितरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समितायां पर्षदि 'देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा 'बाहिरियाए १५० देवियां हैं। बाह्य परिषदा में १२५ देवियां हैं। अब धरणेन्द्रकी परिषत के देव देवियों की स्थिति कहते हैं-'धरणस्स णं रनो' इत्यादि 'धरणस्सणंरनो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' नागकुमारेन्द्र नागकुमारराजधरण की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है। 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' मध्यमा सभा के देवों कितने काल की की स्थिति कही गई है। 'बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' और बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है। इसी प्रकार से नागकुमारेन्द्र नागकुमारराजधरण की એક પંચેતેર દેવિ છે. મધ્યમ પરિષદામાં ૧૫૦ દેસો દેવિ છે. બાહ્ય પરિષદામાં ૧૨૫ સવાસે દેવિ છે. હવે ધરણેન્દ્રની પરિષદના દેવ દેવિયોની સ્થિતિ કહેવામાં આવે છે. 'धरणस्स गं रन्नो' त्यादि _ 'धरणस्स गं रन्नो अभितरियाए परिसाए देवाण' केवतिय कालं ठिई पण्णता' इ लगवन् नागभारेन्द्र नागभार २४ घनी माल्यन्त२ परिषहाना हवानी स्थिति सा नी ४ाम मावेश छ ? 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता' मध्यमा समान वानी स्थिति सानी उस छ १ 'बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता' भने माघ પરિષદાના દેવની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવેલ છે? એજ પ્રમાણે नागभारेन्द्र नागभार २।४ ५२नी 'अम्भितरियाए परिसाए देवीण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवोण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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