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________________ ७३२ जीवाभिगमसूत्रे पर्षदि अर्द्धतृतीयानि देवीशतानि-अ‘धिक द्विशतानि प्रज्ञप्तानि-'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो' चमरस्य खलु भदन्त ! असुरकुनारेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य 'अभितरियाएं' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां प्रथमायां पर्षदि 'देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? तथा-'मज्झि मियाए परिसयाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां द्वितीयस्यां पर्षदि देवानां कियन्तं कालं स्थितिः-आयुष्यकाल: प्रज्ञप्ता ? तथा-'बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' बाह्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पर्षदि देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवम् हे भदन्त ! आभ्यन्तरिकायां प्रथम पर्षदि देवीनां स्थितिः कियन्तं कालं प्रज्ञप्ता तथा 'मज्झि. भियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्षदि देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा-'बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' बाह्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पर्षदि देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चमरस्स णं असुरिदस्स असुररन्नो' चमरस्य खलु असुरकुमारेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य 'अभितरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां पर्षदि 'देवाणं अट्टाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता' देवाना. चमर की 'अभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' आभ्यन्तर सभा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है? 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' मध्यम परि. षदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? तथा 'बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पनत्ता' बाह्य परिषदा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा'! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररनो अभितरियाए परिसाए देवाणं अड्डाइजाइं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता' हे गौतम असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर सभा के देवों की स्थिति भगवन मसुरेन्द्र मसु२००१ यमरनी 'अभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवडय काल ठिई पण्णत्ता' सम्यन्त२ परिषहाना हेवानी सानी स्थिति हवामा मावत छ ? 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता' मध्यम परिषहाना हेवानी स्थिति ८ जनी हवामां मावत छ ? तथा 'बाहिरियाए परिसाए देवाण केवइय' काल ठिई पण्णत्ता' मा परिवहन वानी स्थिति team जनी वामां भाव छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अभितरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाइ पलियोवमाइ ठिई पण्णत्ता' हे गौतम! असुरेन्द्र असु२००४ यमनी माल्य જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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