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________________ ७०२ जीवाभिगमसूत्रे योजनशतानि आयाम विष्कम्भेण द्वीपा भवन्ति, बावीस तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं त्रयोदशोत्तर द्वाविंशतियोजनशतानि परिक्षेपेण द्वीपा भवन्ति । 'छट्ट चउक्के अट्ठजोयणसयाइ आयाम विक्खंभेणं' पष्ठचतुष्केऽष्टयोजनशतानि आयामविष्कम्भेण द्वीपा भवन्ति, तथा-'पणवीसंगृणतीसजोयणसए परिक्खेवेणं' एकोनत्रिंशदधिक पञ्चविंशतियोजनशतानि परिक्षेपण। 'सत्तमचउक्के नवजोयणसयाई आयामविक्खभेणं' सप्तमवतुष्के नवयोजनशतानि आयाम विष्कम्भेण, तथा-'दो जोयणसहस्साइं अट्ठपणयाले जोयणसए परिक्खेवेणं' द्वे योजनसहरी पञ्चचत्वारिशदधिकानि अष्टयोजनशतानि (२८४५) परिक्षेपेण द्वीपा भवन्ति । अथ सर्वेषां चतुष्काणामवगाहना विष्कम्भ पदिधिपरिमाणज्ञानार्थ गाथामाह'जस्स य जो' इत्यादि, 'जस्स य जो विक्खभो' यस्य चतुष्कस्य यो यावत्परिमितो कुछ अधिक है 'पंचमचउक्के सत्तजोयणसयाई आयामबिक्खंभेणं बावीसं तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं' पंचम चतुष्क में अश्वकर्ण आदि द्वीपों की लम्बाई चौड़ाई सात सौ योजन की है। और परिक्षेप कुछ अधिक बाइस सौ तेरह-२२१३ योजन का है 'छट्ट चउक्के अट्ठ जोयणसयाई आयामबिक्खंभेणं पणवीसंगुणतीस जोयणसए परि खेवेणं' छठे चतुष्क में उल्कामुख आदि द्वीपों की लम्बाई चौड़ाई आठ सौ योजन की है और परिक्षेप कुछ अधिक पचीस सौ गुनतीस २५२९ योजन का है 'सत्तमचउके नव जोयणसयाई आयाम विक्खभेणं दो जोयणसहस्साइं अट्ठ पणयाले जोयणसए परिक्खेवेणं' छठे चतुष्क में लम्बाई चौड़ाई नौ सौ योजन की है और परिक्षेप कुछ अधिक दो हजार आठ सौ पैंतालीस-२८४५ योजन का है। यहां इस विषय में गाथा 'जस्सयजो विक्खंसो ओगाहो तस्स तत्तिओ चेव' विक्खंभेणं बावीसं तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं' पांयम यतुमा म કર્ણ વિગેરે દ્વીપની લંબાઈ પહેળાઈ સાતસો જનની છે. અને પરિક્ષેપ BU पधारे २२१३ मावीससे ते२ यानने। छे. 'छद्र चउक्के अद्र जोयण. सयाइ आयामविक्खंभेणं पणवीसंगुणतीसजोयणसए परिक्खेवेणं' छ। यतुमा ઉલ્કામુખ વિગેરે દ્વીપની લંબાઈ પહોળાઈ આઠસો જનની છે. અને પરિ२५ / पधारे ५-याससे मागत्रीस २५२८ योजननाछे. 'सत्तम चउक्के नवजोयण सयाई आयामविक्खंभेणं दो जोयणसहस्साई अदृ पणयाले जोयणसए परिक्खेवेण' सातमा यतुभा मा पागा नसेयाननी छे. अने પરિક્ષેપ કંઈક વધારે ૨૮૪૫ બે હજાર આઠસે પિસ્તાળીસ એજનને છે. मा संबंधमा मा प्रभारीनी ॥ ४ छे. 'जस्स जो विक्खंभो ओगाहो જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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