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________________ ६९४ जीवाभिगमसूत्र द्वीप आयामविष्कम्भेण चत्वारि योजनशतानि द्वादशपञ्चषष्ठानि योजनशतानि किश्चिद्विशेषाधिकानि परिक्षेपेण, पद्मवरवेदिका वनषण्डमनुष्यादि स्वरूपं च सर्वमपि एकोरुकद्वीपवज्ज्ञातव्यम् । 'आयसमुहाणं पुच्छा' आदर्श मुखानां पुच्छा' हे भदन्त ! दाक्षिणात्यानामादर्शमुखमनुष्याणां कुत्र आदर्शमुखनामको द्वीपः प्रज्ञप्तः, इति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' हे गौतम ! 'हयकण्ण दीवस्स' हयकर्ण नामक द्वीपस्य 'उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ' उत्तरपौरस्त्यात् चरमान्तात् 'पंचजोयणसयाई ओगाहित्ता' पञ्च योजनशतानि लवण समुद्रमवगाह्य 'एस्थ णं दाहिजिल्लाणं आयंसमुहमणुस्साणं' अत्र खलु दाक्षिणात्यानाम् आदर्शमुखमनुष्याणाम् 'आयंसमुहदीवे णामं दीवे पन्नते' आदर्शमुखदीपो नाम द्वीपः प्रज्ञप्तः 'पंचजोयणसयाई आयामविक्खभेणं' स चादर्शमुखद्वीपः आयामविष्कम्भेण पञ्चयोजनशतानि के अन्तर में दाक्षिणात्य शष्कुली कर्ण मनुष्योंका शष्कुली कर्ण नामका द्वीप कहा गया है। यह शकुली कर्ण द्वीप चार सौ योजन का लम्बा चौडा है। इसकी परिधि कुछ अधिक वारह सौ पैंसठ योजन की है। शेष वर्णन एकोरूक द्वीप के प्रकरण जैसा जानना चाहिये ? 'आयंसमुहाणं पुच्छा' हे भदन्त ! आदर्श मुख मनुष्यों का आदर्श मुख नामका द्वीप कहा पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है । हे गौतम 'हयकण्णदीवस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमं. ताओ पंचयोजणसयाई ओगाहित्ता एत्थणं दाहिणिल्लाणं आयंसमुह मणुस्साणं आयंसमुहदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' हयकर्ण द्वीप के ईशान कोने के चरमान्त से लवण समुह में पांच सौ योजन प्रविष्ट होने पर वहां आगत स्थान पर दक्षिण दिशा के आदर्श मुख मनुष्यों का आदर्श मुख नामका द्वीप कहा गया है। यह द्वीप 'पंवजोयणसयाई દ્વીપ કહ્યો છે. આ શકુંલીકર્ણદ્વીપ ચારસો જનની લંબાઈ પહેલાઈ વાળે છે. તેની પરિધિ કંઈક વધારે બારસો પાંસઠ જનની છે. બાકીનું વર્ણન એ કોરૂક દ્વીપના પ્રકરણ પ્રમાણે સમજવું. 'आयसमुहाणं पुच्छा' है लगवन् माहेश भुम मनुष्यानो माइश भुम નામને દ્વિીપ કયાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે छ 'गोयमा ! हयकण्णदीवस्स उतरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पंचजोयणसयाइ ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं अयंसमुहमणुस्साणं आयंसमुहदीवे णाम दीवे पण्णते' हे गौतम! जयदीपना शान भूशाना सरमा-तथा सवाणुसमुद्रमा પાંચસો યોજન પ્રવેશ કરવાથી ત્યાં આવેલ સ્થાન પર દક્ષિણ દિશાના આદર્શ मनुष्यानमाइश भुभनाभना दी५ यो छे. मा दीपनी 'पंच जोयण सयाई જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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