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________________ ६७७ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४२ डिंबडमर-कलहादि निरूपणम् नष्टः स्वामी-धनस्वामी यस्य तत्तथा-अस्वामिकं द्रव्यजातम्, 'पहीणसेउयं' प्रहीणसेचकम्-प्रहीणाः प्रणष्टाः सेक्तारः सेचकाः धनप्रक्षेप्तारो यस्य तत् संप्रति न तत्र धनस्थापिता वर्तते एतादृशं स्थानम्, अथवा प्रहीणसेतुकमिति, प्रहीणः सेतुः गमनागमनभूमियस्य तत् । भूमेरुनतावनतत्वेन 'पहीणमग्गाहाइवा' पहीणमार्गमिति वा प्रहीणः प्रणष्टः मार्गः जनानां गमनागमनं यस्य तत् । 'प्रहीणगोत्तागा. राइ वा' प्रहीणगोत्रागारमिति वा, प्रहीणं पणष्टं गोत्रागारं तत्स्वामि गोत्रीयजनस्यापि अगारं यस्य तत्, निक्षिप्तधनराशि स्वामिनो गोत्रीयजनोऽपि न जीव तीत्येतादृशं स्थानम् । एतानि वस्तूनि सन्ति किम् १ तथा-'जाइं इमाई' यानि इमानि 'गामागरनगरखेडकव्वडमडंवदोणमुहपट्टणासमसंवाहसन्निवेसेसु' ग्रामाकरनगरखेटकर्बटमडम्बद्रोणमुखपत्तनाश्रमसंवाहसन्निवेशेषु 'सिंघाडगतिगचउक्कवचरअपने पास पुरानी वस्तुएं संग्रहित करते हैं ? बहुत पुराना होने से 'पहीणसामियाइ वा' वहां ऐसा भी द्रव्य होता है, कि जिसका कोई स्वामी न हो! 'पहीणसेउयाइ वा' ऐसा भी वहां द्रव्य होता है, कि जिसमें फिर कोइ धन जमा करने वाला जन भी न हो। 'पहीणमग्गाइ वा' जिसकी भूमी जाने आने योग्य नही हो । 'पहीणगीत्तागाराइ वा' वहां ऐसे भी धन स्थान होते है कि वहां धन रखने वालों के गोत्रका कोई भी मनुष्य न बचा हो अर्थात् सब मर गये हो और उसका घर भी नष्ट हो गया हो, वहां ऐसे स्थान होते है क्या फिर 'जाइ इमाई गामागर णगर खेडकव्वड मडंबदोणमुहपट्टणासमसंवाहसभिवेसेसु' जो ये वहां ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संवाध और सनिवेश है उनमें तथा उनमें जो 'सिंघाडग' शृङ्गाटक के आकार जैसे रास्ते है 'तिगचउक्कचच्चर चउम्मुहमहोपहेतु' त्रिक तीन तुना परतुमान। सर हाय छ ? घायु हुनु पाथी 'पहीणसमियइवा' त्यां ५५ द्रव्य हाय छ ना ४ मासी न डाय ? 'पहीणसे उयाइवा' ત્યાં એવું પણ ધન હોય છે કે જેમાં પાછું, કઈ જમા કરાવનાર માણસ न हाय अथवा रेनी भूभी १ मा योग्य न डाय 'पहीणगोत्तागाराइवा' ત્યાં એવા પણ ધનસ્થાન હોય છે કે ત્યાં ધન રાખવાવાળાઓના વંશને કઈ પણ માણસ બ ન હોય ? અર્થાત્ બધાજ મરી ગયા હોય ? અને तेनु घ२ ५ नाश पाभ्यु डाय ? या स्थान हाय छे ? 'जाइं इमाई गामागरणगरखेडकव्वडमडंबदोणमुह पट्टणासमसंवाहसन्निवेसेसु' २ मा त्यो श्राम આકર નગર એટ કર્બટ મોંબ દ્રોણમુખ પત્તન આશ્રમ, સંવાહ અને संनिवेश छ, तमां तथा त 'सिंघाडग' शिंधाना मा२ २१।२२ताया જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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