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________________ ६५२ ___ जीवाभिगमसूत्रे हन्त गौतम ! सन्ति एकोरुक द्वीपे शालिव्रीहि यवादिकाः, किन्तु 'नो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' नैव खलु ते शाल्यादयः तेषामेकोरुकमनुजानां परिभोगतया-उपभोगाय कदाचिदपि आगच्छन्तीति । 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'गत्ताइ वा' गर्ता इति वा, गर्ता अत्र महती खड्डा, 'दरीइ वा' दरी इति वा, दरी मषिकादिककृता लध्वी खड्डा, 'घसीइ वा' घसी इति वा, घसी-भूमिरजः 'भिगुत्ति वा' भृगुरिति वा, पर्वत शिखररूप प्रपातस्थानम् 'ओवाएइ वा' अवपात इति वा, अवपातो निम्ना भूमिः यत्र जनः स प्रकाशेऽपि पतति, 'बिसमेइ वा' विषममिति वा, विषमम्-उच्चनीचत्वेन दुरारोहावरोहस्थानम्, 'विज्जलेइ वा' विजलमिति वा, विजलं शुष्कप्रायकर्दमस्थानम्, 'धूलीइ वा' धूलिरिति वा होते हैं क्या ? तिल होते हैं क्या ? इक्षु होते हैं क्या? उत्तर में प्रभुश्री कहते है-'हंता अस्थि हां गौतम! ये सब वहां होते हैं। किन्तु 'णो चेव गंतेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' वे वहां के मनुष्यों के खाने आदि के काम में नहीं आते हैं 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे गत्ताइ वा दरीइवा धसीइ वा, भिगुत्ति वा, ओवाएइ वा, विस मेइ वा, विज्जलेइ वा, रेणूह वा, पंकेइ वा चलणीइ वा' हे भदन्त ! उस एकोरुक द्वीप में बडे २, गर्त-खड़े-होते हैं क्या! दरी-मूषिकों द्वारा किये गये छोटे २, गड्डे-बिल-होते हैं क्या ? घसी फटी हुई लकीर वाली भूमि होती हैं क्या ! भृगु-पर्वत-शिखरादि उच्चप्रदेशहोते हैं क्या! अवपात-ऐसे भी स्थान होते हैं क्या! कि जहां पर मनुष्य प्रकाश में भी गिर पड़े ! विषम ऐसे भी स्थान होते हैं क्या ! कि जहां मनुष्य का चढना उतरना कठिन होता है ऐसे भी स्थान AL प्रशन उत्तरमा प्रभुश्री छ । 'हता अत्थि' गौतम ! मा मधुन त्यां डाय छे. परंतु ‘णो चेव णं तेसि मणुयाण परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति' त धान्य त्यांना मनुष्याना माडा२ माहिना मम माया नथी. 'अस्थि ण भते! एगोरुयदीवे दीवे गत्ताइवा, दरीइवा, घसीइवा, भिगुत्ति वा ओवाएइवा, विसमेइवा,' हे सगवन् ! ते ३४ द्वीपमा मोटा मोटा ગર્ત ખાડા હોય છે ? દરી ઉંદરડાઓ દ્વારા કરવામાં આવેલ નાના નાના ખાડા હોય છે ? અર્થાતુનાના દરે હોય છે? ઘસેલી અર્થાત્ ફાટેલી તરાડવાળી જમીન હોય છે? પર્વત શિખર વિગેરે ઉંચા પ્રદેશ હોય છે. અપાત એવા સ્થાને હોય છે? કે જ્યાં મનુષ્ય પ્રકાશમાં પણ પડી જાય ? વિષમ એવા સ્થાને હોય છે? કે જ્યાં મનુબેને ચઢવા ઉતરવાનું કઠણ બને ? જ્યાં થોડા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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