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________________ जीवाभिगमसूत्रे स्तूप४ दामिनी५ कभण्डलु ६ कलश:७ वापी८ स्वस्तिका९ पताक १० यवो११ मत्स्य १२ कूर्म १३ रथवर १४ मकर १५ शुकस्थाला १६ कुशा १७ ष्टापदवीची१८ सुप्रतिष्ठक१९ मयूर २० श्रीदामा२१ भिषेक२२ तोरण २३ मेदिनी२४ उदधिवर २५ भवन२६ गिरिवरा२७ दर्शललित२८ गज२९ ऋषभ ३० सिंह३१ चमरोत्तम ३२ प्रशस्तद्वात्रिंशल्लक्षणधराः, तत्र छत्रं लोकप्रसिद्धम् १, ध्वजः२, युगः३, स्तूपः-स्तम्भः४,दामिनी-पुष्पमाली५, कमण्डलु:-तापसपानी य पात्रम६, कलश:७, वापी८ स्वस्तिकः ९ पताका१० यवो-धान्यविशेषः ११, मत्स्यः१२ कूर्मा १३ इमौ प्रसिद्धौ, रथवर।१४, मकरः१५ शुकस्थाल-शुकभोजनपात्रम् एतन्माङ्गलिकचिह्नविशेषः १६, अङ्कुशः१७, अष्टापदबीचिः-द्यूतफलकम् १८ सुपतिष्ठकं स्थापनकम् १९ मयूरः-प्रसिद्धः २० श्रीदामसुन्दर मालाकार आभरणविशेष: २१ , अभिषेक:-कमलाभिषेकः हस्तिद्वयक्रियमाणाभिषेकयुक्तलक्ष्म्याकारश्चिह्नविशेषः २२, तोरणम् २३, मेदिनी-मेदिनीभृतराजा २४, उदधिः-समुद्रः २५, वरभवनं-पासादः २६, गिरिवरः-प्रधानपर्वतः २७, आदर्श:-दर्पणम् २८, ललितगजो मनोज्ञदन्ती २९ ऋषभो गौः, ३० सिंहःसमणिडाला' इनका ललाट चतुरस्र-पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर ऐसे चारों कोनों में बराबर प्रमाण वाला और समतल वाला होने से रमणीय होता है 'कोमुइरयणिकर विमलपडिपुन्नसोम्मवयणा' इनका सौम्य मुख कार्तिकी पूर्णमासी के चन्द्र की तरह विमल होता है और परिपूर्ण होता है 'छत्तुन्नयउत्तिमंगा' छत्र के जैसे आकार वाला ऊपर से गोल इनका मस्तक होता है 'कुडिल सुसिणिद्ध दीहसिरपा' इनके मस्तक के केश कुटिल-वक्र होते हैं, सुस्निग्ध होते हैं और लम्बे होते हैं। 'छत्तज्झयजुगथूमदामिणि कमंडलुकलसवाविसोत्थियपडाग जव मच्छ कुम्भरहवरमगरसुकथालअंकुसअट्ठावयवीईसुपइट्ठक मयूर પશ્ચિમ દક્ષિણ અને ઉત્તર એમ ચારે ખૂણાઓમાં પ્રમાણ સરના અને સમતલ प डपाथी २भएणीय डाय छे. 'कोमुइरयणिकरविमलपडिपुन्नसोम्मवयणा' તેનું સૌમ્યમુખ કાર્તિકી પૂર્ણમાસીના ચંદ્ર જેવું નિર્મલ અને પરિપૂર્ણ હોય છે. 'छत्तुन्नय उत्तमंगा' छत्रना ! मारवाणु उपरथी तेनु भरत हाय छ. 'कुडिल सुसिणिद्ध दीह सिरया' तेना माथाना । इटिस in sय छे. सुनिय हाय छे. अने einाय छे. 'छत्तज्झयजूगथूमदामिणि कमंडलु कलस वावि सोस्थिय पडागजव मच्छ कुम्भ रहवर मगर सुकथाल अंकुस अट्ठावय वीई सुपईट्ठक मयूरसिरिदामाभिसेय तोरण मेइणि उदधिवर भवणगिरिवर જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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