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________________ ५८२ जीवाभिगमसूत्रे चिबुकम् अधरोष्ठाधो भागः 'डाढी' इति प्रसिद्धं येषां ते तथा, 'ओय. वियसिलप्पवालबिंबफलसन्निभाधरोहाः' ओयवियशिला प्रवालबिलम्ब फलसन्निभाधरोष्ठाः तत्र-ओयविय' इति देशी शब्दः परिकर्मितार्थवाचकस्तेन ओयविय-परिकमित्तं शिलाप्रवालं शिलारूपं प्रवालं-विद्रुम, बिम्बफलं-स्वनामख्यातो रक्तवर्णफलविशेषः तयोः सन्निभः रक्ततया तत्सदृशः अधरोष्ठः अधस्तन ओष्ठो येषां ते तथा, 'पंडुरससि सगल विमल निम्मल संखगोखीर फेणदगरय मुणालिया धवलदंत सेढी' पाण्डुरशशिशकल विमलनिर्मलशङ्ख गोक्षीर फेतदकरजोमुणालिका धवलदंतश्रेणयः, तत्र-पाण्डुरं यत् शशिशकलम-चन्द्र मण्डलखण्डम् -अकलङ्कश्चन्द्रभाग इत्यर्थः विमल-आगन्तुकमलरहित: मध्ये निर्मलश्च-स्वाभाविकमलवर्जितः शङ्खो गोक्षीरं फेनश्च दकरजश्व वाताहत जलकणः, मृणालिकाच पद्मिनी सूत्रं तद्वद धवला-स्वच्छा दन्त श्रेणिः-दन्तपक्तिः येषां ते तथा, 'अखंड दंता' अखण्डदन्ताः- अत्रुटिता: परिपूर्णीकारा दन्ता येषां ते तथा 'अफुडियदंता' अस्फुटितदन्ता-अजर्जरदन्ताः, 'अविरलदंता' अविरलदन्ताः निरन्तरालाः परस्परं घनीभूता दन्ता येषां ते तथा, अतएव 'सुजायदंता' सुजात के जैसी विस्तीर्ण हनुक-चिबुक अधरोष्ठ के नीचे का भाग होता है । 'ओयवियसिलप्पवाल बिंबफलसनिभाहरोहा' इनके अधरोष्ठ-नीचे के ओष्ठ घर्षण आदि से परिकर्मित किया हुआ शिला रूप प्रवाल-असली मूंगा के समान एवं बिंब फल कुन्द फल के समान लाल वर्ण वाले होते है। 'पंडुरससिछगल विमल निम्मल संख गोखीर फेणदगरयमुणालिया धवल दंतसेढी' इनकी दंतश्रेणी पांडुर-श्वेत-चन्द्रमा के टुकडोजैसी विमल उज्ज्वल तथा निर्मल-स्वच्छ शंख के जैसी गाय के दूध के जैसी फेन जैसी पवन से उडे हुए जलकण के जैसी एवं कमलनाल के तन्तु जैसीशुभ्र-धवल-होती है। 'अखंडदंता, अप्फुडियदंता. अविरलदंता, सुजा. तदंता एगदंतसेढिव्वअणेगदंता, हुतवह निदंतधोत तत्त तवणिज्जरत्त પ્રશસ્ત અને વાઘની ડાઢી જે વિસ્તૃત હનુક-ચિબુક નીચેના હોઠની नयना माग होय छे. 'ओयविय सिलप्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोद्रा' तमना એક્ટ અધરોષ્ઠ ઘર્ષણ વિગેરેથી પરિકર્ષિત કરવામાં આવેલ શિલાપ્રવાલ અસલ મુંગાના છે અને બિંબફલ, કંદ ફલના જે લાલ રંગવાળો હોય छ. 'पंडुर ससिछगल विमल निम्मल संख गोखीरफेणदगरयमुणालिया धवछ तसेटो' मानी त पति पांड२ घाणी अर्थात् चंद्रभाना ४२वी વિમલ, ઉજ્જવલ, અને નિર્મલ અર્થાત્ સ્વચ્છ શંખના જેવી ગાયના દૂધ જેવી, श वी शुध्र अर्थात् धौजी हाय छे. 'अखंडदंता, अप्फुडीयदंता, अविरलदंता, सुजातदंता, एगदतसेदिव्व अणेगदंता, हुतवह निद्धंत धोततन જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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