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________________ ५८० जीवाभिगमसूत्रे नखा येषां ते तथा, 'चंदपाणिलेह।' चन्द्रपाणिरेखाः, चन्द्रइव चन्द्राकारा पाणिरेखा-हस्तरेखा येषां ते तथा, 'सूरपाणि लेहा' सूर्यपाणिरेखाः, सूर्य इव सूर्याकारा पाणिरेखा येषां ते तथा, 'संखपाणिलेहा' शङ्ख पाणिरेखाः, शङ्ख इव शङ्खाकारा पाणिरेखा येषां ते तथा, 'चक्कपाणिलेहा' चक्रपाणिरेखाः, चक्र इव चक्राकारा पाणिरेखा येषां ते तथा, 'दिसासोअस्थिय पाणिलेहा' दिकू सौवस्तिक पाणिरेखाः, दिक् प्रधानः स्वस्तिकः दक्षिणवतः स्वस्तिकः तदाकारा पाणै रेखा येषां ते तथा, 'चंदसूरसंखचक्कदिसा सोअस्थिय पाणिले हा' चन्द्रसूर्यशङ्ख चक्र. दिक्सौवस्तिक पाणिरेखाः, पूर्वोक्त मेव विशेषण पञ्चकं प्रशस्तता प्रकर्ष सूचनाय संग्रह्य कथितमिति न पौनरुक्त्यम् । 'अणेगवरलक्खणुत्तम पसत्थ सुचिरतिय पाणिलेहा' अनेकवरलक्षणोत्तम प्रशस्त शुचिरतिद पाणिरेखाः, अनेकैः वरैःप्रधानः लक्षणे रुत्तमाः प्रशस्ता:-प्रशंसास्पदीभूताः शुचयः-पवित्रा:-निर्मलाः रतिदाः-प्रीत्युत्पादकाः पाणिरेखा येषां ते तथा, 'वरमहिसवराह सीहसद्ल होते हैं। इनके हाथों में चन्द्र के आकार की रेखाएँ होती हैं, सूर्य के आकार की रेखाएँ होती हैं शंख के आकार की, चक्र के आकार की और श्रेष्ठ दक्षिणावर्स वाले स्वस्तिक के आकार की रेखाएँ होती हैं 'चंदसूरसंखचक्कंदिसासोआत्थिय पाणिलेहा अणेगवरलक्खणुत्तमपसत्थ सुचिरतियपाणिलेहा' इस तरह चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र, और श्रेष्ठ स्व. स्तिक की रेखाएँ इनके हाथों में होती है तथा इनको और भी सुन्दर२, उत्तम लक्षण वाली बहुत रेखाएँ होती हैं अतएव वे प्रशस्त-प्रशंसा के योग्य होते हैं, पवित्र होते हैं और अपने २, फल देने रूप कर्तव्य के अनुसार निष्पन्न हुई रेखाओं वाले होते हैं। 'वरमहिसवराहसीह सलउसभणागवर पडिपुण्णविउल उन्नयखंधा' इनके दोनों स्कंधચિકણા અને રૂક્ષતા વિનાના હોય છે. તેમના હાથમાં ચંદ્રના આકારની રેખાઓ હોય છે. સૂર્યના આકાર જેવી રેખાઓ હોય છે. શંખના આકાર જેવી, ચક્રના આકાર જેવી, અને ઉત્તમ દક્ષિણ વર્તાવાળા સ્વસ્તિકના આકાર જેવી રેખાઓ डाय छे 'चंदसूरसंख चक्कदिसासोअत्थिय पाणिलेहा अणेगवरलक्खणुत्तमपसत्थ सुचिरतियपाणि लेहा' मा प्रमाणे यंद्र, सूर्य, शम, मन श्रे०४ स्वस्तिना જેવી રેખાએ તેમને હાથમાં હોય છે. તથા અનેક બીજા પણ સુંદર સુંદર ઉત્તમ લક્ષણે વાળી ઘણીજ રેખાઓ હોય છે. તેથી જ તેઓ પ્રશસ્ત પ્રશંસા કરવાને ગ્ય હોય છે. પવિત્ર હોય છે. તથા પિત પિતાના ફળ આપવા રૂપ इतव्य प्रमाणे नागेली २५ वाय छे. 'वरमहिस वराहसीह सदुल उसभणागवरपड़िपुण्णविउल उन्नयखंघा' तेमना मन्न लाया सी જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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