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________________ __५५७ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.३६ एकोरुकद्वीपस्थितद्रमगणवर्णनम् पासायाकासतलमंडव एगसाल बिसाल तिसालग चउरं स चउसाल गप्रघरमोहण घरवलभिघर चित्तसालमालयभत्तिघरवदृतंस चतुरंसणंदियावत्तसंठियायय पंडुरतल मुंडमाल हम्मियं' प्राकाराहालक चरिकद्वारगोपुरप्रासादाकाशतल मण्डपैकशाल द्विशालक त्रिशालक चतुरस्र चतुःशालगर्भगृह मोहनगृहवलभीगृह चित्र शालमालकभक्तिगृह वृत्तव्यत्र नन्दिकावर्त संस्थितायत पाण्डुतलमुण्डमालहय॑म्, तत्र प्राकारो वप्रः, अट्टालका-प्रासादोपरिवाश्रयविशेषः, चरिकानगर प्राका रान्तमूले अष्टहस्तप्रमाणो मार्गः, द्वारं स्पष्टम्, गोपुरं पुरद्वारम्, प्रासादः प्रसिद्धः चरियदार गोपुर पासायाकास तल मंडव एग साल विसालगतिसाल गचउरंस चउसाल गम्भ घर मोहण घर वलभिघर चित्तसाल मालयभत्ति घर वट्टतंसचतुरंसणं दियावत्त संठियायत पंडुरतल मुंड माल हम्मियं' जिस प्रकार से संसार में प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, प्रासाद, आकाशतल, मंडप, एकशाल, विशाल, त्रिशाल, चतुः रस्र, चतुःशाल गर्भगृह, मोहन गृह, वलभी गृह, चित्रशाल मालक भक्ति गृह, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र, नंदिका वर्त्त, संस्थितायत पाण्डुरतल मुण्डमाल हर्म्य, इनमें कोट का नाम प्राकार हैं जो नगर या राजमहल के चारों और होता है प्रासाद के ऊपर जो आश्रम विशेष होता है उसका नाम अट्टालक है इसे आजकल की भाषा में अटारी नाम से कहा जाता है नगर और प्राकार के बीच में जो आठ हाथ प्रमाण रास्ता रहता है उसका नाम चरिका है । दरवाजे का नाम द्वार है नगर के प्रधान द्वार का नाम गोपुर है राजमहल का नाम प्रासाद है बिलकुल कासतलमडव एगसाल विसालगतिसालगचउरंसचउसालगभघरमोहणघर वलभिघर चित्तसाल मालय भत्तिधर वट्ट तस चउरस गंदियावत्तसठिया यतपंडुरतलमुंडमालाहम्मिय" २ प्रमाणे गत्मा प्रा॥२, महास, य२ि४, द्वा२, गपुर, प्रासाद, माती , भ७५, सशस, द्विशास, निशा, ચતુરસ્વ, ચતુઃશાલ, ગર્ભગૃહ, મોહનગૃહ, વલભીગૃહ, ચિત્રશાલ માલક, सतिगृह, वृत्त, २५२, यतुरख, नवित, संस्थितायत, पांडुरतस મુડમાહર્યું, તેમાં કોટનું નામ પ્રાસાદ છે. કે જે નગર અથવા રાજમહેલની ચારે તરફ હોય છે. પ્રાસાદની ઉપર જે આશ્રય વિશેષ હોય છે. તેનું નામ અટાલક છે. તેને હાલની ભાષામાં અટારી કહેવામાં આવે છે. નગર અને પ્રકારની વચમાં આઠ હાથ પ્રમાણને જે રસ્તે રાખવામાં આવે છે, તેનું નામ ચરિકા છે. દરવાજાનું નામ દ્વાર છે. નગરના મુખ્ય દરવાજાનું નામ ગોપુર છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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