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________________ ५५२ जीवाभिगमसूत्रे कण्णवालि ससिसूर - उसभचक्क गतल भंगतुडिय हत्थमालग वलक्खदीणार मालिया' हारार्द्धहार वर्त्तनकमुकुट कुण्डल वामोत्तग हेमजाल मणिजाल कनकजाल सूत्रकोच्चयित कटक क्षुदकैकावलि कण्ठ सूत्रमकरिकोरः स्कन्धग्रैवेय श्रोणी सूत्रकचूडामणि कनकतिलक पुष्पक सिद्धार्थक कर्णपालि शशिसूर्य ऋषभचककतल भङ्कक त्रुटित हस्तमालका- वलक्षदीनार मालिकाः, तत्र हारोऽष्टदशसरिकः, अर्द्धहारोनवसरिकः, वर्त्तनकः - कर्णाभरणविशेषः, मुकुटम्, कुण्डलम् लोक-प्रसिद्धमेव, वामोत्तकं हेमजालं सच्छिद्र सुवर्णालङ्कारविशेषः एवम् - मणिजाल कनकजाले अपि कर्णाभरणविशेष रूपे एव, अनयोर्भेदो लोकादवसेयः, सूत्रकम् - सुवर्ण सूत्रम् उच्विइय कडग खुडूडिय एकावलिकंठसुत्तमगरि म उरक खंधगे वेज्ज सोणिसुतग- चूडामणि कणग तिलग फुल्ल सिद्धत्थय कण्णवालि ससिसूर उसभ चक्कगतलभंग तुडिय हत्थ मालगवलक्ख दीणार मालिया' जिस प्रकार से ये जगप्रसिद्ध आभूषण हैं जैसे कि हार, अर्द्धहार, वेष्टनक, मुकुट, कुण्डल, वामोत्तक, हेमजाल, मणिजाल कनक जाल, सुवर्ण सूत्र, अच्चयित कटक, क्षुद्रिका (मुद्रिका) एकावलिका, कंठसूत्र मकरिका, उरस्कन्ध ग्रैवेयक, श्रेणीसूत्र, चूडामणि, कनकतिलक, पुष्पक, सिद्धार्थक, कर्णपाली, शशि, सूर्य, ऋषभ, चक्रकतलभङ्गक, त्रुटित, हस्तमालक और वलक्ष इनमें अठारहलरों का हार होता है नौ लरों का अर्धहार होता है जो कर्ण का आभाण विशेष होता है उसका नाम वेष्टनक है मुकुट और कुण्डल ये प्रसिद्ध ही हैं । छिद्र सहित जो सुवर्ण का आभरण विशेष होता है उसका नाम वामोत्तक- हेमजाल है मणिजाल और कनकजाल ये भी कानों के एक वलिकंठ सुत्तमगरि मउरकखंधगेवेज्ज सोणिसुत्तग चूडामणि कणगतिलग फुल्लसिद्धत्थय कण्णवालिससिसूरउसभ चक्कगतलभंग तुडियहत्थ मालगवलक्ख दोणार मालिया' ने प्रमाणे या भगत्प्रसिद्ध मालूषायो छे भेभडे हार, अर्धहार, वेष्टन, भुकुट, मुंडल, वामोत्तर, हेभलस, भणिलस, उनउलस, सुवर्णसूत्र, अय्ययितउट ९, क्षुद्रिअ, (मुद्रिअ ) मे अवसिश्र, सूत्र, भरिडा, २२४ध, जैवेय, श्रेणीसूत्र, यूडामणि, उन पुलिस, पुण्य, सिद्धार्थ, उपासी शशि, सूर्य, ऋषल य, तसलंगड, त्रुटित, हस्तभाव, मने वलक्ष, भा માં અઢાર સેરાવાળો હાર હાય છે નવસેરાવાળે! અહાર હેાય છે. કાનનુ જે આભરણ વિશેષ હાય છે, તેનું નાંમ વૈષ્ટનક છે. મુકુટ અને કુડલ એ પ્રસિદ્ધજ છે. છિદ્રવાળુ' જે સેાનાનુ` આભૂષણ હેાય છે, તેનુ નામ ‘વામાત્તક’ હેમજાલ છે. મણિજાલ અને કનકજાલ, એ પણ કાનના આભરણુ વિશેષજ છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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