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________________ ५१२ जीवाभिगमसूत्रे दुमगणा पत्ता समाणाउसो !' एतन्नामका दुमगणाः वृक्षसमूहाः प्रज्ञप्ताः कथिता हे श्रमण ! आयुष्मन् ! कथंभूता एते मगणाः तत्राह - ' कुस' इत्यादि, कुसविकुसविशुद्धरुवखमूला' कुशविकुशविशुद्धट्टा मूलाः तत्र कुशाः - दर्भाः, विकुशा:वल्कलादयस्तृणविशेषास्तै विशुद्धं रहितं वृक्षमूलं तदधोभागो येषां ते तथा 'मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो' ते वृक्षाः मूलवन्तः कन्दवन्तः स्कन्धवन्तः त्वग्वन्तः शाखावन्तः प्रवालवन्तः पत्रवन्तः पुष्पवन्तः फलवन्तो बीजवन्तः, 'पत्तेहि य पुष्फेहि य अच्छष्ण परिच्छण्णा' पत्रैश्च पुष्पैश्चाच्छन्नप्रतिच्छन्नाः- पत्रपुष्पैः 'आच्छन्नपरिच्छन्ना' सर्वतः आच्छादिता पुत्रपुष्पाकीर्णा इत्यर्थः, 'सिरीए अतीव २ उवसोभमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति' श्रिया - शोभया अतीवातीव - अतिशयेन उपशोभमाना उपशोभमानास्तिष्ठन्ति ते वृक्षा इति, 'एगोरुय दीवेणं दीवे अनेक दन्तमाल नामके वृक्ष, और अनेक शैलमाल नामके वृक्ष है इन वृक्षों का मूल भाग 'कुसविकस विसुद्धरुवखमूला' कुश - और कांश के सद्भाव से सर्वथा रहित है अर्थात् इन वृक्षों के नीचे न घास है और न काश है दर्भ जातिका जो घास है उनका नाम कुश है तथा जो काश जाति का घास होता है उसका नाम विकुश है ये सब वृक्ष 'मूलमंतो, कंदमंतो जाव बीयमंतो' प्रशस्त मूल वाले हैं, प्रशस्तकन्द वाले है, प्रशस्त स्कन्ध वाला है प्रशस्त छाल वाले हैं प्रशस्त शाखाओ वाले है प्रशस्त प्रवालों- कोंपलों-वाले है प्रशस्त पत्तों वालें हैं, प्रश स्त पुष्पों वालें है सुन्दर फलों वाले हैं, और सुन्दर बीजों वाले है । 'पत्ते हिय पुप्फेहिय, अच्छपण परिच्छण्णा' ये वृक्ष निरन्तर पत्रों और पुष्पों से लदे रहते हैं 'सिरीए अतीव २, उवसोभेमाणा २, चिति' અનેક દંતમાલ નામના વૃક્ષેા અને અનેક શૈલમાલ નામના વૃક્ષેછે. આ વૃક્ષને भूजला 'कुस विकुसविसुद्धरुक्खमूला' श-हर्ल भने असना सद्भावथी सर्वथा રહિત છે. અર્થાત્ આ વૃક્ષેાની નીચે ઘાસ કે કાસ હાતા નથી. દર્ભે ની જાતનું જે ઘાસ હાય તેને કુશ કહે છે અને કાસની જાતનું જે ઘાસ થાય છે તેને विदेश उहे छे. या गधा वृक्ष 'मूलमंतो, कंदमंतो, आव बीयमं तो' प्रशस्त મૂળવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત કેંદ્રવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત સ્કંધવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત હાલ વાળા હોય છે. તેમજ પ્રશસ્ત શાખાઓ વાળા હોય છે. પ્રશસ્ત પ્રવાલેા. કૂંપળેા વાળા હોય છે. પ્રશસ્ત પાના વાળા હોય છે. પ્રશસ્તફૂલાવાળા હોય છે. સુંદર ફલાવાળા હોય છે. અને સુંદર ખીજાવાળા होय छे. 'पत्ते हिय पुप्फेहिय. अच्छण्ण परिच्छण्णा' या वृक्ष निरंतर पत्र पुण्पोथी सहायेसा रहे छे, 'सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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