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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.५ रत्नप्रभापृथिव्याः क्षेत्रच्छेदः ३७ 'अस्थि दवाई' सन्ति द्रव्याणि 'वण्णओ' वर्णतः 'काल जाव घडताए चिट्ठति' काल यावत् घटतया तिष्ठन्ति, वर्णतः कालानि नीलानि लोहितानि हारिद्राणि शुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्धानि दुरभिगन्धानीति, रसतस्तिक्तरसानि कटु कानि कषायाणि अम्लानि मधुराणि, स्पर्शतः कर्कशानि मृदनि गुरुकाणि लघुनि शीतानि उष्णानि स्निग्धानि रूक्षाणि, संस्थानतः परिमण्डलानि वृत्तानि व्यत्राणि चतुरस्राणि आयतानि एतावत्संस्थानपरिणतानि यावद् घटतया तिष्ठन्ति किमिति यावत्पदघटित प्रश्नः, भगवानाह-'हंता अत्थि' हन्त सन्तीति । 'इमीसे णं भंते ! एतस्याः खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभायाः पृथिव्याः ‘रयणणामगस्स कंडस्स' रत्ननामकस्य काण्डस्य 'जोयणसहस्सबाहल्लस्स' योजनसहस्रबाहच्छेएण छिजमाणस्स' केवली की बुद्धि से प्रतर भाग के रूप मेंखण्ड करने पर जो उसके आश्रित द्रव्य हैं वे क्या 'वण्णओ काल. जाव घड़त्ताए चिटुंति' वर्ण की अपेक्षा कृष्ण आदि वर्ण वाले होते हैं गन्ध की अपेक्षा-सुरभि दुरभिगंध वाले होते हैं क्या ? रस की अपेक्षा तिक्तरस आदि वाले होते हैं क्या ? स्पर्श की अपेक्षा कर्कश आदि स्पर्शों वाले होते हैं क्या? तथा-संस्थान की अपेक्षा परिमंडल आदि संस्थान वाले होते हैं क्या? परस्पर सम्बन्ध आदि रूप होकर परस्पर समुदाय रूप से रहते हैं क्या? इस तरह से पूर्वोक्त जैसा यह प्रश्न है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं -'हंता, अत्थि' हां गौतम ! वे द्रव्य पूर्वोक्त कथनानुसार होते हैं । 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयण णामगस्स कंडस्स' हे छिज्जमाणस्स' उपजीनी युद्धिथी प्रतर विभागना ३५ ५ ४२वाया तना माश्रयथा २ रे द्रव्य छ, ते शु 'वण्णओ काल, जाव, घडताए चिदंति' વર્ણની અપેક્ષાથી કૃષ્ણ-કાળા વિગેરે વર્ણ વાળા હોય છે.? ગંધની અપેક્ષાથી સુરભિ, સુરભિ, સુગંધ અને દુધવાળા હોય છે? રસની અપેક્ષાથી તિકતરસ વિગેરે રસવાળા હોય છે? સ્પર્શની અપેક્ષાથી કર્કશ વિગેરે સ્પર્શવાળા હોય છે? તથા સંસ્થાનની અપેક્ષાથી પરિમંડલ વિગેર સંસ્થાનવાળા હોય છે ? પરસ્પરમાં સંબદ્ધ વિગેરે પણાથી પરસ્પરમાં સમુદાય પણાથી રહે છે? આ પ્રમાણે પહેલાંની માફક આ પ્રશ્ન પૂછેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ स्वामीन ४ छ ? 'हंता अस्थि' । गौतम! ते द्रव्य पूर्वात प्रश्न या કથન પ્રમાણેનું હોય છે. 'इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणणामगस्स कंडस्स' लगवन् ! જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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