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________________ ४३२ ___ जीवाभिगमसूत्रे न्तराणि शेषं तदेव नैव खलु तानि विमानानि व्यतिव्रजेत् एतन्महान्ति खलु विमानानि प्रज्ञप्तानि श्रमणायुष्मन् ! ॥मू० २७॥ ॥तिर्यग्योनिकोद्देशकः प्रथमः ॥ ____टोका-'अस्थि णं भंते ! विमाणाणि' अत्रास्तीति अव्ययपदं बहथे, तथा च सन्ति-विद्यन्ते खलु भदन्त ! विनानानि-विशेषतः पुण्यप्राणिभिमन्यन्तेतगत सौख्यानुभवनेन अनुभूयते इति विमानानि 'सोस्थियाणि' स्वस्तिकानि 'सोत्थियावत्ताई' स्वस्तिकावर्तानि 'सोस्थियपभाई' स्वस्तिकप्रभाणि 'सोस्थियकताई स्वस्तिककान्तानि 'सोत्थियवनाई' स्वस्तिकवर्णानि 'सोस्थियलेस्साई' स्व स्तिकलेश्यानि 'सोत्थियज्झयाई' स्यस्तिकध्वजानि 'सोत्थियसिंगाराई' स्वस्तिकश्टङ्गाराणि 'सोत्थियकूडाई' स्वस्तिककूटानि 'सोत्थियसिट्ठाई' स्वस्तिक___ कुल कोटि के विचार में विशेषाधिकार को लेकर गौतम! विमानों के अस्तित्व को लक्ष्य करके ऐसा पूछ रहे हैं 'अस्थि णं भंते ! विमाणाई सोस्थियाणि'-इत्यादि। सूत्र २७ टीकार्थ-यहां 'अस्थि' यह अव्यय पद है और यह बहु अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जो पुण्यात्माओं द्वारा विशेष रूप से-अर्थात् तद्गत सौख्य के अनुभवन से-अच्छे माने जाते हैं वे विमान है यहां गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है 'अस्थि णं भंते ! सोत्थियाणि सोत्थिया वत्ताई' हे भदन्त ! क्या स्वस्तिक स्वस्तिकावर्त्त, 'सोस्थियपभाई' स्व. स्तिकप्रभा 'सोत्थिय कंताई' स्वस्तिक कान्त 'सोत्थियवनाई' स्वस्तिकवर्ण 'सोत्थियलेस्साई' स्वस्तिक लेश्या, 'सोस्थियज्झयाई स्वस्तिकध्वज 'सोस्थिय सिंगाराई' स्वस्तिक श्रृङ्गार 'सोस्थियकूडाई स्वस्तिक कूट કુલકેટિયોને વિચાર કરતાં વિશેષાધિકારને લઈને વિમાનના અસ્તિત્વને उद्देशाने श्रीगौतभाभी से पूछे छे , 'अस्थि णं भंते ! विमाणाई सोस्थि याणि' त्यादि -मडिया 'अत्थि' में अध्यय यह छ. अन से मस सभा પ્રયુક્ત થયેલ છે. જે પુણ્યાત્માઓ દ્વારા વિશેષપણાથી અર્થાત તદ્દગત સુખના અનુભવનથી સારા માનવામાં આવે તેને વિમાન કહેવામાં આવે છે. આ संमंधमा श्रीगौतमस्वामी प्रसुश्रीन मे पूछयु छ में 'अस्थि णं भंते ! सोत्थियाणि सोत्थियावत्ताई' है सावन् । शुं स्वस्ति, स्वस्तिवत 'सोस्थिय पभाई' स्वस्ति प्रमा 'सोस्थिय कंताई वस्ति id 'सोत्थिय वन्नाइ' स्वर वर्ण 'सोत्थिय लेस्साई" स्वस्ति वेश्या, 'सोत्थियज्झयाइ" सस्तिय १ 'सोत्थियसिंगाराई' स्वस्ति: ॥२ 'सोस्थियकूडाई" જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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