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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.२७ गन्धाङ्गस्वरूपनिरूपणम् ___४२५ 'कइ णं भंते ! पुप्फजाइकुलकोडी जोणी पमुहसयसहस्सा पनत्ता' कति खलु भदन्त ! पुष्यजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि-कथितानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सोलसपुष्फजाइ कुलकोडी जोणीपमुहस यसहस्सा पन्नत्ता' षोडशपुष्पजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि-कथितानि । तान्येव दर्शयति-तौं जहा' इत्यादि, 'तजहा' तद्यथा-'चतारि जलयराणं' चत्वारि कुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि जलचराणां जलजानां कमलादीनां जातिभेदेन भवन्ति, तथा-'चत्तारि थलयराणं' चत्वारि कुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि स्थलचराणां स्थलजातानां कोरण्डकादीनां जातिभेदेन, तथा 'चत्तारि महारुक्खियाणं' चत्वारि कुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि महावृक्षाणां मधुकादीनांम्, 'चत्तारि महागुम्मियाण' चत्वारि कुल कोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि महागुल्मिकानां जात्यादीनां जातिभेदेन भवन्तीति । इन सब गाथाओं का अर्थ तथा गणित पहले कह चुके हैं। 'कइ गं भंते ! पुप्फ जाइ कुलकोडी जोणी पमुह सयसहस्सा पन्नत्ता' हे भदन्त ! पुष्पों की कितनी लाख कुलकोडीयां कही गई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं -'गोयमा ! सोलस पुष्फजाइ कुलकोडी जोणी पमुहसयसहस्सा पन्नत्ता' हे गौतम ! पुष्पों की सोलह लाख कुल कोटियां कही गई हैं । जो इस प्रकार से हैं -'चत्तारि जलयराण' चार लाख जल में उत्पन्न होने वाले कमलों की 'चत्तारि थलया ण' चार लाख स्थल में उत्पन्न होने वाले कोरण्ट आदि के पुष्पों की 'चत्तारि महा गुम्मियाणं' और चार लाख महा गुल्मिक आदि के पुष्पों की कुल कोटियां होती है ये कुल कोटियां जाति के भेद से होती है। આ બને ગાથાઓને અર્થ તથા ગણિત પહેલાં ઉપર કહેવામાં આવી ગયેલ છે. श्रीगौतमस्वामी भगवान श्रीमहावीर प्रसुन पूछे छे 'कहि णं भंते ! पुप्फजाई कुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता' है भगवन् यानी इस કોટિ કેટલા લાખની કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमपाभीने हे छ 'गोयमा ! सोलस पुप्फजाई कुलकोडी जोणीपमुहसय सहस्सा पण्णत्ता' हे गौतम ! ध्यानी सण साम द जीटीयो हेवामा भावी छ. २ मा प्रमाणे छ 'चत्तारि जलयराणं' नसभा पन्त थवावाणा उभगानी २ वाम 'चत्तारि थलयराणं' स्थापन यावा ।२८ विगैरे ध्यानी याराम सीटिया. तथा 'चत्तारि महा गुम्मियाणं' यार साम मह। ગુલ્મિક વિગેરેના પુષ્પોની કુલ કોટી જાતિના ભેદથી હોય છે, जी० ५४ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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