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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. २६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् ४१३ 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्को सेणं पुथ्वकोडी' भुजपरिसर्पाणां स्थितिर्जघन्ये नान्तर्मुहूर्त म् उत्कर्षेण पूर्व कोटिप्रमाणा भवताति । उद्वर्त्तना - 'उवहित्ता दोच्चं पुढर्वि गच्छति' उद्घृत्य भुजपरिसर्पात् निर्गत्य द्वितीयां शर्करा प्रभां पृथिवीं गच्छन्ति उपरि यावत् सहस्रारकल्पं गच्छन्तीति । 'णवजाइकुलकाडी जोणीपमुहसयसहस्सा भवतीति मक्वायं तेषां भुजपरिसर्पाणां नवजातिकुलकाटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि भवन्ति, इत्येवमाख्यातम् 'सेसं तहेव' शेषं नवरमित्यादिना यत्कथितं तदतिरिक्तं लेश्यादि द्वारजातं तथैव - पक्षिवदेव भुजपरिसर्पाणामपि ज्ञतव्यामात । 'उरपरिसप्पथलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं भते ! पुच्छा' उरः परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां खलु भदन्त ! कतिविधो योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः १ कहा गया है वैसा ही वह सब यहां पर भी कहलेना चाहिये णाणत्तं' केवल स्थिति में च्यवन उद्वर्तना में और कुल कोटि में इन द्वारों में भिन्नता है सो अब सूत्रकार इसी बात को प्रकट करते है- 'जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुय्वकोडी' भुजपरिसर्प तिर्यग्योनिकों की स्थिति जघ न्य तो अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है, 'उच्चट्टित्ता दोच्च पुढविं गच्छति' भुजपरिसर्प की पर्याय से च्युत होकर ये नीचे को सीधे द्वितीय शर्करा पृथिवी तक जाते हैं। और ऊपर में सहस्रार देवलोक तक जाते हैं 'णवजातिकुलकोडीजोणीपमुह सयसहस्सा भवतीतिसमक्खाया' इन भुज परिसर्पों की कुल कोटियां नौ ९ लाख होती है । 'सेसं तहेव' बाकी का और सब लेश्यादि द्वारों का कथन इन मुजपरिसर्पों के सम्बन्ध का पक्षियों के कथन के जैसा ही है । 'उरपरिसप्पथलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणिया णं भंते! पुच्छा' हे भदन्त ! महिया पशु समल बेवु. 'नाणत्तं' जेवण स्थितिद्वार, यवनद्वार, उद्वर्तना દ્વાર, અને કુલકેઢિ દ્વારમાં ભિન્નપણુ આવે છે. જેથી હવે સૂત્રકાર એ જ वात प्रगट पुरे छे. 'जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी' परिसर्प તિય ચૈાનિકાની સ્થિતિ જધન્યથીતેા અંતર્મુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વ अटीनी छे. 'उच्चट्टित्ता दाच्च पुढवि गच्छति' परिसर्पनी पर्यायथा व्यवीने તેઓ સીધા નીચેની બીજી શર્કરાપ્રભા પૃથ્વી સુધી જાય છે. અને ઉપરમાં सहस्त्रार हेवलो! सुधी लय छे. 'णव जातिकुल काडी जोणी पमुहसय सहस्सा भवतीतिमवखाया' मा लुक परिसर्पानी डुस आदि नव-साथ होय छे. 'सेस' तहेब' माडीना बेश्या द्वार विगेरे सघणा द्वारा संबंध स्थनमा ભુજ પરિસર્પોના સંબંધના કથન પ્રમાણે જ छे. 'उर परिसप्पथलयर पंचिं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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