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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् ४०५ भवन्ति काययोगिनो वा भवन्तीति प्रश्न:, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहा वि' त्रिविधा अपि भवन्ति, ते पक्षिणो मनोयो. गिनोऽपि भवन्ति वचोयोगिनोऽपि भवन्ति तथा काययोगिनोऽपि भवन्तीत्युत्त रम् । उपयोगद्वारे प्रश्नमाह-'ते णं' इत्यादि, 'ते गं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! पक्षिणो जीवाः 'कि सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता' किं साकारोपयुक्ता अनाकारोपयुक्ता वा भवन्तीति प्रश्न:, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्ता वि' साकारोपयुक्ता अपि भवन्ति ते पक्षिणो जीवास्तथा-अनाकारोपयुक्ता अपि भवन्तीति । उत्पादद्वारे आह-'ते गं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! पक्षिणो जीवाः 'कओ उववज्जति' कुत:-कस्मास्थानादागत्य अत्र-पक्षियोनौ समुत्पद्यन्ते, 'किं नेरइएहितो उववज्जति' कि नैरहे भदन्त ! वे जीव पक्षी क्या मनयोगी होते हैं ? या वचन योगी होते हैं ? या काययोगी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं -'गोयमा! तिविहा वि' हे गौतम ! ये तीनो योगवाले होते हैं । मनोयोग वाले भी होते हैं वचन योग वाले भी होते हैं और काययोग वाले भी होते हैं 'ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता' हे भदन्त ! वे जीव क्या साकारोपयोग वाले होते हैं या अनाकारोपयोग वाले होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अनागारोवउत्ता वि' हे गौतम ! वे जीव साकारोपयोग वाले भी होते हैं और अनाकारोपयोग वाले भी होते हैं । तेणं भंते ! जीवा कआ उव. वज्जति' ये भदन्त ! किस योनि में से आकर के यहां जीव पक्षिरूप से उत्पन्न होते हैं ? 'किं नेरइएहितो उव०' क्या नैरयिकों में से તે જીવે-પક્ષિયે શું માગવાળા હેય છે? કે વચન ગવાળા હોય છે? અથવા કાયયોગવાળા હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસવામીને हे छ ? 'गोयमा ! तिविहा वि' है गौतम! ते प्रारना यागाणा હોય છે. અર્થાત્ માગવાળા પણ હોય છે, વચનગવાળા પણ હોય છે. भने अयागाणा ५६ हाय छे. शथी. गौतमस्वामी पूछे छे हैं 'ते गं भते जीवा कि सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता' हे सगवन् ! शु सारा५यास वा हाय छ ? है मनाशपयाणा हाय छे. 'ते ण भंते जीवा को उववज्जति' हे भगवन् ! ते ४ योनिमाथी भावाने महियां पक्षि पाथी उत्पन्न थाय छ ? 'कि नेरइएहिं तो उववज्जति' | નરયિકોમાંથી આવીને તે પક્ષિ પણાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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