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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.४ स्वरकाण्डादि घनोदध्यादेर्बाहल्यम् भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'असंखेज्जाई जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ते' असंख्येयानि योजनसहस्राणि बाहल्येन प्रज्ञप्तः घनो. दधेरधस्तात् असंख्येययोजनसहस्रपरिमित बाहल्येन घनवातः प्रज्ञप्तः, घनोदधेरधस्तात असंख्येययोजनसहस्रपरिमितः बाहल्येन घनवातः प्रज्ञप्तः इत्यर्थः। एवं तणुवाए वि ओवासंतरे वि' एवं यथा-रत्नप्रभा सम्बन्धि घनवातो घनोदधेरधस्तात् असंख्येययोजनबाहल्येन विद्यते तथा-घनवातस्यापि अधोदेशे रत्नप्रभा सम्बन्धितनुवातोऽपि असंख्येययोजनसहस्रपरिमित बाहल्येन प्रज्ञप्तः एवं तनुवातस्यापि अधोभागे रत्नप्रभा संबन्धि अवकाशान्तरमसंख्येययोजनसहस्रपरिमितं बाहल्येन विद्यते इति भावः । __ रत्नप्रभापृथिवी सम्बन्धि घनोदधि घनवात तनुवातावकाशान्तराणां बाहल्यं दर्शयित्वा शर्कराप्रभा सम्बन्धि घनोदध्यादीनां बाहल्यं दर्शयितुमाह-'सक्करप्पबाहल्लेणं पन्नत्ते' कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! असंखेजाइं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ते' हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो घनवात है वह असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला कहा गया है यह घनवात घनोदधि के नीचे है। 'एवं तणुवाए वि ओवसंतरे वि' इसी तरह धनवात के नीचे तनुवात है और यह भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है तथा-तनुवात के नीचे अवकाशान्तर-शुद्ध आकाश है वह भी असं. ख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है। इस प्रकार से रत्नप्रभा सम्बन्धी घनोदधि, घनवात, तनुवात, और अवकाशान्तर इनकी मोटाई दिखाकर अब सूत्रकार शर्करा प्रभा सम्बन्धी घनोदधि आदि को की मोटाई दिखलाते है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'सकरप्पपृथ्वीना बोधिनी नाय २ धनपात छ त केवइयं बाहल्लेण पन्नत्ते' मा विस्तारवाणी हे छे. ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रमुछे ते 'गोयमा! असंखेजाई जोयणसहस्साई बाल्लेण पन्नत्ते' हे गौतम! । २त्नप्रभा पृथ्वीनार ઘનવાત છે. તે અસંખ્યાત હજાર એજનના વિસ્તાર વાળ કહ્યો છે. આ धनवात धनाधिनी नीये छे. 'एवं तणुवाएवि, ओवसतरे वि' से प्रभार ઘનવાતની નીચે તનુવાત છે અને તે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનના વિસ્તાર વાળે છે. તથા તનુવાતની નીચે અવકાશાન્તર શુદ્ધ આકાશ છે. આ પ્રમાણે રત્નપ્રભા સંબંધી ઘને દધિ, ઘનવાત, તનુવાત, અને અવકાશાન્તર, એને વિસ્તાર બતાવીને હવે સૂત્રકાર શર્કરામભા પૃથ્વી સંબંધી ઘનેદધિ વિગેરે ને વિસ્તાર બતાવે છે. આમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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