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________________ ३९० जीवाभिम इति प्रश्नः, उत्तरयति - संमृच्छिम जलयरपंचिदिय निरिक्खजोणिया दुविहा पत्रता' संमृच्छिमजलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः द्विविधाः- द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताःकथिताः 'तं जहा ' तद्यथा - 'पज्जत्तगसंमूच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया ' पर्याप्त कसं मूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका 'अपज्जत संमुच्छिम जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया य' अपर्याप्तकसंमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्रयोनिकाश्च तथाच - पर्याप्तकापर्याप्तकभेदेन संमृच्छिमजलचराः द्विमकारका भवन्तीति भावः । ' से तं संमूच्छिमजलयर पंचिंदियतिरिक्खजोयणिया' ते एते पर्या तापर्यातादिभेदभिन्नाः द्विप्रकारकाः संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका निरूपिता इति || ' से किं तं गब्भवक्कंतिय जलचरपंचिदियतिरिक्खजोणिया ' अथ के ते गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः, गर्भजजलचराणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'गब्भवक्कंतिय जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया दुबिहा पनत्ता' गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव कितने प्रकार के होते हैं ? 'संमुच्छिम जलघर पंचिंदि०' हे गौतम! संमूच्छिमजलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव दो प्रकार के होते हैं- जैसे - ' पज्जत्तग समुच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय०' पर्याप्त संमच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव और 'अपज्जत्तग संमुच्छिम जलचर०' अपर्याप्तक संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव 'से किं तं गब्भवक्कंतिय जलचर०' हे भदन्त ! गर्भज जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव कितने प्रकार के होते है ? 'गब्भवक्कतिय जलचर पंचिंदिय०' हे गौतम ! गर्भज जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव दो प्रकार के होते हैं-'तं जहा' जैसे સ'સૂચ્છિમ જલચર પ'ચેન્દ્રિય તિયંગ્યાનિક જીવ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે ? उत्तरभां अलुश्री ४हे छे ! 'समुच्छिमजलयर पंचिंदिय०' हे गौतम! सभूर्च्छिम नायर ययेन्द्रिय तिर्यग्योनि वो मे अभरना ह्या छे, म 'पज्जत्तग संमुच्छिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया पर्याप्त सभूर्च्छिम ४सयर यथेन्द्रिय तिर्यग्योनि भव भने 'अगज्जत्तगस मुच्छिजलयरपं चिंदिय तिरिकुख जोणिया' अर्याप्त सभूमि सयर पयेन्द्रिय तिर्यग्योनिङ 'से किं तं गव्भवकंतियजलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणिया' हे लगवन् ગજ જલચર પચેન્દ્રિય તિય ચૈનિક જીવા કેટલા પ્રકારના હાય છે? उत्तरभां अनुश्री उडे छेडे 'गब्भवक तियजलयरपंचिदिय तिरिक्खजोणिया दुबिहा पण्णत्ता' हे गौतम! गर्ल यर यथेन्द्रिय तिर्यग्योनि वे જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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