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________________ २८४ जीवाभिगमसूत्रे नरकावासभेदेन पङ्कप्रभा नारकाः तथोष्णामपि वेदनां वेदयन्ति, नरकावास भेदेनैव किन्तु 'नो सीओसिणवेयणं वेदेति' नो नैव शीतोष्ण वेदनां वेदयन्ति । 'ते बहुतरगा जे उसिणं वे यणं वेदेति' तत्र ते बहुतरका ये उष्णां वेदनां वेदयन्ति प्रभूततराणां शीतयोनित्वात् । 'ते थोवतरगा जे सीयं वेयणं वेदेति' ते स्तोकतरा ये शीत वेदनां वेदयन्ति अल्पतराणामुष्णयोनित्वादिति । धूमप्पभाए पुच्छा' धूमप्रभायाँ पृच्छा हे भदन्त ! धूमप्रभा नारकाः किं शीत वेदनां वेदयन्ति उष्णवेदनां वा, शीतोष्णवेदनां वा वेदयन्ति इति प्रश्न:, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'सीयपि वेयणं वेदेति' शीतामपि वेदनां वेदयन्ति -'गोयमा!सीयंपि वेषणं वेदेति उसिणंपि वेयणं वेदेति' हे गौतम ! वे नारक नरकावास के भेद से शीत वेदना का भी अनुभवन करते है और उसी प्रकार नरकावास के भेद से ही उष्णवेदना का भी अनुभवन करते हैं - पर 'णो सीतोसिणं वेयणं वेदेति' शीतोष्ण वेदना का अनुभवन नहीं करते हैं । 'ते बहुतरगा जे उसिणं वेयणं वेदेति' ऐसे नारक जीव वहां अधिक हैं जो उष्णवेदना का अनुभवन करते हैं क्योंकि प्रभूततर नारक जीवों की योनि शीत होती हैं । तथा 'ते थोवतरगा जे सीयं वेयणं वेदेति' जो नारक जीव शीतवेदना का अनुभवन करते हैं वे स्तोक तर-बहुत थोडे-है। क्योंकि यहां अल्पतरों की उष्णयोनि होती है। 'धूमप्पभाए पुच्छा' हे भदन्त ! धूमप्रभा के नारक क्या शीतवेदना का अनुभवन करते है या उष्णवेदना का अनुभवन करते हैं ? या शीतोष्णरूप मिश्र वेदना का अनुभवन करते हैं ? वेदेति उसिणपि वेयणं वेदेति', गौतम ! ते नार। न२०१ासना थी शीत વેદનાને પણ અનુભવ કરે છે. અને એજ પ્રમાણે નરકાવાસના ભેદથી જ SY वहनामा ५९ अनुभव ४२ छे. ५२'तु णो सीयोसिणं वेयणं वेदेति' शीत वहनानी अनुभव ४२ता नथी. 'ते बहुतरगा जे उसिणवेयणं वेदेति' એવા નારક છે ત્યાં વધારે છે કે જેઓ ઉષ્ણ વેદનાને અનુભવ કરે छ. भ प्रभूततर ना२४ वानी योनी शीत य छ, तथा 'ते थोवतरगा जे सीयं वेयण वेदेति' ने ना२४ 0 शीत वहनाना अनुभव ४२ छे. तसा સ્તકતર અર્થાત્ ઘણા થડા હોય છે. કેમકે અહિંયા અ૯પતાની ઉણોની હોય છે. 'धूमप्पभाए पुच्छा' हे भगवन् धूमप्रमा पृथ्वीना ना२४ ७ शुशीत વેદનાનો અનુભવ કરે છે? અથવા ઉણ વેદનાને અનુભવ કરે છે? શીશ્ન રૂપ મિશ્ર વેદનાને અનુભવ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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