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________________ जीवाभिगमसूत्रे संठाणसंठिया पन्नत्ता' ते आवलिका बाह्या नरका नानासंस्थान संस्थिताः प्रज्ञप्ता:-कथिताः 'तं जहा' तद्यथा-'अयकोट संठिया' अयः कोष्ठ संस्थिताः अयः कोष्ठोलोहमयः कोष्टस्तद्वत् संस्थिताः इत्ययाकोष्ठसंस्थिता इति १।। 'पिट्ठपयणग संठिया' पिष्टपचनकसंस्थिताः, यत्र सुरानिर्माणाय पिष्टादिकं पच्यते तत् पिष्टपचनकं तद्वत् संस्थिता इति पिष्टपचनकसंस्थिताः २, तथा-कंदू संठिया' कन्दुसंस्थिताः कन्दुः कान्दविकस्य मिष्टान्नपाकपात्रम् तद्वत् संस्थिताः ४ 'कडाह संठिया' कटाहसंस्थिताः-कटाहः शाकादिपाचकः पात्रविशेषः तद्वत् संस्थिता इति कटाहसंस्थिताः ५ 'थाली संठिया' स्थाली ओदनादि पाचनपात्रं तद्वत् संस्थिता इति स्थाली संस्थिताः ६ 'पिटरगसंठिया' पिठरकं यत्र प्रभूतजनयोग्यं धान्यादिकं पच्यते तद्वत् संस्थिता इति पिठरकसंस्थिता ७ "किमियग संठिया' 'कृमिकसंस्थिताः' जीवविशेष युक्ताः इदं पदं पुस्तकान्तरे न लभ्यते पनत्ता' अनेक प्रकार के आकारों वाले हैं-'तं जहां' जैसे-'अयकोह संठिया' कितनेक लोहे के कोष्ठ के जैसे आकार वाले हैं कितनेक 'पिट्ठ पयणग संठिया' मदिरा बनाने के लिये जिसमें पिष्ट आदि पकाया जाता है उस वर्तन के जैसे आकार वाले हैं 'कंदु संठिया' कितनेक कन्दु-हलवाई के पाक पात्र के जैसे आकार वाले हैं 'लोही संठिया' कितनेक-लोही-तबा के जैसे आकार वाले हैं कितनेक 'कडाह-संठिया' कटाह-कडाही-के जैसे आकार वाले हैं 'थाली-संठिया' कितनेक थाली-ओदन पकाने के बरतन के जैसे आकार वाले हैं। कितनेक 'पिटरग संठिया' जिसमें बहुत अधिक मनुष्यों के लिये भोजन आदि पकाया जाता है ऐसे पिठरक के जैसे आकार वाले हैं कितनेक "कि मियग संठिया' कृमिक जैसे-आकार वाले हैं यह पद कहीं कहीं कहीं छ 'अयकोट सट्टिया' सामना २१ मावा छे. या 'पिट्ट पयणग सठिजा' महिश ३ मना। भाटे भी पिट-बाट विगैरे संधवामां आवे छे. ते पासना वा मा२ना हाय छे. 'क'दु सठिया' કેટલાક ક૬ કંદોઈના રાંધવાના પાત્રના આકાર જેવા આકાર વાળા હોય છે 'लोहीसंठिया' मा दाढी-तवाना 4 मारवा छे. सा 'कडाहा संठिया' याना वा ॥२१॥ हाय छे. 'थाली सठिया' हैटसा ભાત બનાવવાના વાસણના આકાર જેવા આકારવાળા હોય છે, અને Beats 'पिटरग संठिया' मां पधारे मासे माटे न साभश्री मनावी शाय तवा पि४२४ का मारवाणा हाय छ, टसा 'किमियग सठिया' भि:२१॥ मारवाणाय छे. मा ५६ टसा अथामा मापामा જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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