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________________ १२८ जीवाभिगमसूत्रे द्वितीयस्याः शर्कराप्रभायाः खलु भदन्त ! 'पुढवीए' पृथिव्याः 'उवरिल्लाओ चरिम. ताओ' उपरितनात् चरमान्तात 'हेठिल्ले चरिमंते' अधस्तनश्वरमान्तः 'एस ण' एतत् खलु 'केवइयं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते' कियत अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'बत्तीमुत्तर जोयण सयसहस्सं' द्वात्रिंशदुत्तर-द्वात्रिंशत्सहस्राधिकं योजनशतसहस्र-योजनलक्षम् १३२००० 'अबाहाए अतरे पन्नत्त' अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम-कथितम । शर्करा. ममा पृथिवी द्वात्रिंशत् सहस्रोत्तरैकलक्षयोजनपरिमिता स्वपिण्डरूपेणाऽस्तीति भावः । 'सक्करप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ' शर्कराप्रभायाः पृथिव्या उपरितनाच्चरमान्तात् 'धणोदहिस्स हेठिल्ले चरिमंते' धनोदधेरधस्तनश्चरमान्तः 'बावण्णुत्तर' द्विपञ्चाशत सहस्रोत्तरम्, 'जोयणसयसहस्सं' योजनशतसहस्रम् करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-दोच्चारण भते ! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेठिल्ले चरिमंते एसण केवइयं अंतरे पण्णत्ते' हे भदन्त ! शर्कराप्रभा नाम की जो द्वितीय पृथिवी है-उसके उपरितन चरमान्त से उसके अधस्तन चरमान्त तक कितना अन्तर है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! बत्तीसुत्तर जोयणसयसहस्सं' हे गौतम ! द्वितीय शर्कराप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमान्त से उसका अधस्तन चरमान्त एक लाख बत्तीस हजार योजन का है क्योंकि शर्कराप्रभा पृथिवी एक लाख बत्तीस हजार योजन के पिण्ड वाली है 'सक्करप्पभाए पुढवीए' हे भदन्त ! शर्कराप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमान्त से घनोदधि के नीचे के चरमान्त तक कितना अन्तर है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सक्करप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ स्वामी प्रभुने से पूछे छे है 'दोच्चाएणं भंते ! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमं - ताओ हेदिल्ले चरिमते ! एस गं केवइए अबाधाए अंतरे पण्णते' भगवन् શર્કરા પ્રભા નામની જે બીજી પૃથ્વી છે, તેના ઉપરના ચરમાંત સુધી કેટલું मात२ ४थुछ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ , 'गोयमा ! बत्तीसुत्तर जोयणसयसहस्स' हे गौतम ! मी शरामा पृथ्वीना 6५२न। यमातथा તેની નીચેનું અરમાન એક લાખ બત્રીસ હજાર જનનું છે. કેમકે શર્કરાप्रमा पृथ्वी मे atm मत्रीस २ योजना पाणी छे. 'सकरप्पभाए पुढवीए' ३ सन् २४२५मा पृथ्वीन पन। यरमांतथी धनाधिनी નીચેના ચરમાંત સુધી કેટલું અંતર કહ્યું છે? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४३ छ 'सक्करप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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