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________________ ૨૨૨ जीवाभिगमसूत्रे 'गोयमा' हे गौतम ! 'सोलस जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते' षोडशयोजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं व्यवधानं प्रज्ञप्तम् । खरकाण्डस्यान्तिमं विभागकाण्डं रिष्ट रत्नकाण्डं तस्याधस्तनचरमान्त रत्नपभोपरितन चरमान्तात् षोडशयोजनसहस्रान्तरेण कथितः रिष्टकाण्डाऽधस्तन चरमान्त पङ्कबहुलोपरितन चरमान्तौ परस्परं संलग्नौ अत उभयोरपि तुल्यप्रमाण मेवान्तरं भरतीति । 'हेठिल्ले चरिमंते एक्कं जोयणसयसहस्सं' रत्नपभाया उपरितनात् चरमान्तात् पङ्कबहुल. स्याधस्तनश्वरमान्तः एकं योजनशतसहस्रम, रत्नपभोपरिचरमान्तात् पङ्कबहुल. काण्डस्याधस्तनचरमान्त एकयोजनशतसहस्रमन्तरं भवतीति ज्ञातव्यम् । यतो. 'गोयमा! सोलस जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पत्ते' हे गौतम! इन दोनों के बीच में सोलह हजार का अन्तर है। खरकाण्ड का अन्तिम काण्ड रिष्ट रत्नकाण्ड है इसके अधस्तन चरमान्त में रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से सोलह हजार योजन का अन्तर कहा गया है। क्योंकि रिष्ट रत्नकाण्ड का अधस्तन चरमान्त और पङ्कबहुल का उपरितन चरमान्त ये दोनों आपस में लगे हुए हैं-मिले हुए है। इसलिये दोनों में बराबर अन्तर है । 'हेठिल्ले चरिमंते एक्कं जोयण सयसह. सं' रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से पङ्कबहुल का जो अधस्तन चरमान्त है वह ट्रक लाख योजन के अन्तर का है। अर्थात् रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से पङ्कबहुलकाण्ड का अधस्तन चरमान्त एक लाख योजन के अन्तर वाला है। क्योंकि रत्नप्रभा पृथिवी का खरकाण्ड सोलह हजार १६००० योजन का है और पङ्कबहुलकाण्ड चौरासी 'गोयमा ! सोलस सहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते' हे गौतम ! मा मननी વચમાં સોળ હજાર જનનું અંતર આવેલું છે, ખરકાંડને છેલે કાંડ રિક્ટકાંડ છે. તેના અધસ્તન ચરમતમાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાંતથી સોળ હજાર જનનું અંતર કહેલ છે. કેમકે રિઝકાંડનુ અધસ્તન ચરમાંત અને પંક બહુલનું ઉપરિતન ચરમાંત આ બેઉ પરસ્પરમાં લાગેલા છે. અર્થાત્ મળેલા छ. तथा से 28भा १२५२ मत२ मावबु छ, 'हेदिल्ले चरिमंते एक जोयणसयसहस्सं' २त्नप्रभा पृथ्वीना ५२यमातथी ५ sesist જે અધસ્તન નીચેનું ચરમાંત છે, એ એક લાખ એજનના અંતરનું છે. અર્થત રત્નપ્રભાના ઉપરના ચરમાંતથી પંક બહુલકાંડનું અધસ્તન ચરમાંત એક લાખ એજનના અંતરવાળું છે. કેમકે રત્નપ્રભા પૃથ્વીને ખરકાંડ ૧૬૦૦૦, જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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