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________________ ११६ जीवाभिगम प्रदेश वर्त्ती चरमान्तः- चरमपर्यन्तः 'एस णं' एतत् खलु 'केवइयं अबाहाए' कियत् अबाधया कियद् योजनाप्रमाणं अन्तरम् अबाधया अन्तरत्व व्याधातरूपया 'अंतरे पनते' प्रज्ञप्तं कथियम् रत्नप्रभा पृथिव्याः खरकाण्डस्य विभागरूपं रत्नकाण्डनामकं यत् प्रथमं काण्डं तस्य य उपरितन चरमान्तस्तदपेक्षया एतस्य अधस्तनश्वरमान्त एतयोरन्तरं कियद् योजनाप्रमाणमबाधया कथितमिति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एक जोयणसहस्सं अबाधाएं अंतरे पनते' एकं योजनसहस्रमबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्, खरकाण्ड विभाग भूतानां चरिमंते' नीचे के चरमान्त तक 'एस णं केवइथं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते' कितना अन्तर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! एक्कं जोपणसहस्संअबाहाए अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम! रत्नप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमान्त से रत्नकाण्ड के नीचे के चरमान्त तक एक हजार योजन का अन्तर कहा गया है क्योंकि खरकाण्ड के विभाग भूत रत्नकाण्डादि सोलहों काण्ड प्रत्येक एक एक हजार का होता है । 'इमी से ण भंते! रणप्पा पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडरस उवरिल्ले चरिमंते एसणं केवइयं अबाधाएं अंतरे पण्णत्ते' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो उपरितन चरमान्त है उससे द्वितीय वज्रकाण्ड के उपरितन चरमान्त तक कितना अन्तर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! एकं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम! रत्नप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमान्त से रत्नांना 'हेठिल्ले चरिम'ते' नीयेना थारभांत सुधी 'एसणं केवइयां अबाहाए अंतरे पण्णत्ते' डेट म ंतर वामां आवे छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीने हे छेडे 'गोयमा ! एक्क जोयणसहस्स अबाहाए अंतरे જળન્ને' હૈ ગૌતમ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાન્તથી રત્નકાંડની નીચેના ચરમાન્ત સુધીમાં એક હજાર ચેાજનનું અંતર કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે ખરકાંડના વિભાગ રૂપ રત્નકાંડ વિગેરે ૧૬ સાળે કાંડા કે જે દરેક એક એક હજાર ચૈાજનના હાય છે. 'इमीसे णं भंते! रयणप्पभा पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिते एसणं केवइयां अबाधाएं अंतरे पन्नत्ते' हे भगवन् ! रत्नयला पृथ्वीना જે ઉપરિતન ચરમાંત છે. તેનાથી બીજા વાકાંડના ઉપરિતન ચરમાંત સુધી કેટલુ અંતર કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે 'गोयमा ! एवं जोयणसहस्स अबाधाए अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम! रत्नप्रला पृथ्वीना જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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