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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू. ९ जीवोत्पत्तिविषयनिरूपणम् स्राणि आयामविष्कम्भेण तथा परिक्षेपेण प्रज्ञप्ता इति भावः । 'इमाणं भंते रयणप्पभा पुढवी' इयं खलु भदन्त ! रत्नपभा पृथिवी 'अंते य मज्झेय सवत्य' अन्ते च मध्ये च सर्वत्र 'समा बाहल्लेणं पन्नत्ता' समा-तुल्या एकरूपेत्यर्थः बाहल्येन पिण्ड भावेन प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः भगवानाह -'हंता गोयमा' हन्त गौतम ! 'इमा णं रयणप्पभा पुढवी' इयं खलु रत्नपभा पृथिवी, 'अंते मज्झे सव्वस्थ समाबाहल्लेणं' अन्ते मध्ये सर्वत्र समा तुल्यैव बाहल्येनेति । 'एवं जाव अहे सत्तमा' एवं रत्नप्रभावदेव शर्कराप्रभात आरभ्य यावत् अधः सप्तमी तमस्तमा पृथिवी अन्तेमध्ये च सर्वत्र बाहल्येन समैव विज्ञेयेति ॥८॥ मूलम्-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभा पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा सव्वजीवा उववण्णा ? गोयमा! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा नो चेव णं सातवीं पृथिवी तक की पृथिवियों की लम्बाई चौड़ाई और परिधि का प्रमाण जानना चाहिये। 'इमाण भंते ! रयणप्पभा पुढवी अंतेय मज्झेय सव्वत्य समा बाहल्लेण पन्नत्ता' हे भदन्त ! यह रत्नप्रभा पृथिवी क्या अन्त में और मध्य में सर्वत्र पिण्ड भाव की अपेक्षा समान-बराबर-एक सी-कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता गोयमा!' हां गौतम! यह रत्नप्रभा पृथिवी अन्त में, सर्वत्र मोटाई की अपेक्षा एकसी कही गई है 'एव जाव अहे सत्तमा' रत्नप्रभा की तरह शर्कराप्रभा से लेकर अधः सप्तमी भी तमस्तमःप्रभा तक की पृथिवियां अन्त में और मध्य में सर्वत्र बाहल्य की अपेक्षा अपने २ में एकसी कही गई है ऐसा जानना चाहिये। सू० ॥८॥ 'इमाणं भंते ! रयणप्पभा पुढवी अंतेय मज्झे य सव्वत्थ समा बाहल्ले णं पन्नता' हे सगन् मा २त्नप्रभा पृथ्वी सन्तमा भने मध्यमा मधे પિંડભાવની અપેક્ષાથી સરખી બરાબર એક સરખી કહી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु ४९ छ'हता 'गोयमा!' है। गौतम ! मा २नमा पृथ्वी अतभा, मध्यमा भने मधे विस्तारनी अपेक्षाथी से सभी डस छ. 'एव जाव अहेसत्तमा' मा २त्नमा पृथ्वीनी म श६२॥प्रभा पृथ्वीथीन मधाससभी તમસ્તમાં પૃથ્વી સુધીની પૃથ્વી અન્તમાં અને મધ્યમાં બધેજ બાહલ્યની અપેક્ષાથી પિતતાનામાં એક સરખી કહેવામાં આવેલ છે. તેમ સમજી લેવું સૂ. ૮ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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