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________________ ५८८ जीवाभिगमसूत्रे टीका—“णपुंसगवेदस्स णं भंते" नपुंसकवेदस्य खलु भदन्त ! 'कम्मस्स' कर्मणः केवइयं कालं बंधठिई पन्नत्ताः' कियन्तं कालं बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्नः भगवानाह –'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं' जघन्येन "सागरोवमस्स' सागरोपमस्य दोन्नि सत्तभागा' द्वौ सप्तभागौ "पलिओवमस्स' पल्योपमस्य 'असंखेज्जइभागेण ऊणगा' असंख्येयनभागेनोनका हीना इत्यर्थः, सागरोपमस्य सप्तभागाः करणीयाः तेषु द्वौ भागौ तौ च पल्योपमस्यासंख्येन भागेन हीनौ तथा “उक्कोसेणं" उत्कर्षेण “वीस सागरोवमकोडाकोडीओ" विंशतिः सागरोपम काटिकोट्यः “दोन्नि य वाससहस्साइं अबाधा' द्वे च वर्ष सहस्र अबाधा द्विसहस्रवर्षप्रमितोऽत्रबाधाकाल: "अबाहूणिया कम्मट्टिई" अबाधोना—अबाधाकालेन हीना कर्मस्थितिः 'कम्मणिसेको' कर्मनिषेकः कर्मदलिकरचनेति ।। हैं, तथा— “उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ" उत्कृष्ट से २० वीस सागरोपम कोटा कोटि की है । “दोन्निय वाससहस्साइं अबाधा" इसमें दो हजार वर्ष की अबाधा है 'अबाहूणिया कम्मटिइ” अबाधा काल से हीन कर्म स्थिति "कम्मणिसेगो' कर्म निपेक कर्म दलिकों की रचना है. “णपुंसगवेए णं भंते ! किं पगारे पन्नत्ते" हे भदन्त ! नपुंसक वेद कैसा कहा गया है ? "गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पन्नत्ते" नपुंसक वेद महानगर के दाह के समान कहा गया है । क्यों कि समस्त भी अवस्थाओं में मदन दाह अर्थात् काम विकार महानगर को जलाने के जैसा ही होता है । इस वेद के उदय में स्त्री और पुरुष दोनों की अभिलाषा होती है. अतः इसे महानगर के जलाने वाले दाहके जैसे दाहवाला कहा गया है। "समणाउसो' हे श्रमण ! आयुष्मन् ! "सेत्तं णपुंसगा" इस प्रकार भेद और प्रभेदों को लेकर नपुंसकों का निरूपण किया गया हैं. नपुंसक प्रकरण समाप्त हुआ। सूत्र-१८ भ्यातमा भागथी सातियामा प्रमाणुनी छ. तथा "उक्कोसेणं वीस सागरोवमकोडाको डीओ" Bष्टथी २० वीस सागरा५म 1 डीनी छे. 'दोन्निय वाससहस्साई अवाधा" भाभा मे १२ वर्षांनी समाधा आण छ “अबाहूणिया कम्मट्टिई" असाधा थी डीन भस्थिति “कम्मणिसेगो” भनिष-४ मिनी स्यना छ. “णपुंसगवेएणं भंते ! किं पगारे पण्णत्ते" हे भगवन् नपुंसवे वा २॥ हे छे ! 11 प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ ।—“गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पण्णत्ते" नस४ वह महानाना हाई प्रभाएन। કહેલ છે. કેમકે-સધળી એવી અવસ્થામાં મદન દાહ અર્થાત્ કામવિકાર મહાનગરને બાળવા જેજ હોય છે. આ વેદના ઉદયમાં સ્ત્રી અને પુરૂષ બન્નેની અભિલાષા થાય છે. तेथी तेने महानगरन माणवानाहाहाहातना पाहावाणे हे छ. “समणा उसो" हे श्रम आयुभन् “से तं णपुंसगा" 20 शत मे अने प्रहाने सधने नसतुं नि३५९४ કરવામાં આવેલ છે. આ રીતે આ નપુંસક પ્રકરણ સમાપ્ત સૂ૦ ૧૮ જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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